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४ : सम्बोधि
इस मानसिक दुविधा के जाल में फंसे हुए मुनि मेघकुमार की रात बहुत लंबी हो गयी। ज्यों-त्यों रात बीती । सूर्योदय हुआ। मुनि मेघकुमार भगवान् के पास आया, वंदना-नमस्कार कर मौन होकर बैठ गया।
भगवान् ने उसकी मनःस्थिति को ताड़ते हुए कहा- 'मेघ ! तुम रात्रि के इन स्वल्प कष्टों से विचलित होकर घर जाने की तैयारी कर रहे हो?' - मुनि मेघ ने कहा-'भंते ! आप यथार्थ कह रहे हैं। मेरा मन विचलित हो गया है।'
भगवान् अतीन्द्रियद्रष्टा थे। वे सब-कुछ जानते थे—जो घटित हो चुका है, घटित हो रहा है और घटित होगा। उनका ज्ञान निरावरण था; कालातीत और क्षेत्रातीत था । मेघकुमार के पूर्वभव का वृत्तांत बताते हुए भगवान् बोले-'मेघ ! सुनो, मैं तुम्हारे पूर्वभव का वृत्तांत बता रहा हूं। आज के इस राजकुमार के भव से तीन जन्म पूर्व तुम वैताढ्य पर्वत की तलहटी के सघन जंगल में हाथी थे। तुम्हारा नाम 'सुमेरुप्रभ' था। तुम यूथपति थे। तुम्हारे परिवार में अनेक हाथी
और अनेक हथिनियां थीं। तुम आनंदपूर्वक अपने दिन बिता रहे थे। सर्वत्र तुम निर्भयता से घूमते थे। एक बार ग्रीष्म ऋतु का समय था। जेठ का महीना। चिलचिलाती धूप । वेगवान तूफान। वृक्षों के संघटन से जंगल में दावानल सुलग गया। चारों ओर पशु दौड़-धूप करने लगे। तुम उस समय बूढ़े हो गये थे । तुम्हारा शरीर जर्जरित था । बल क्षीण हो चुका था। सारा यूथ इधर-उधर बिखर गया । तुम अकेले रह गए। प्यास के कारण पानी की खोज में जा रहे थे। एक सरोवर देखा। उसमें पानी कम और कीचड़ अधिक था। तुम पानी पीने की तृष्णा से उसमें घुसे और कीचड़ में धंस गए। उस समय एक युवा हाथी ने तुम्हें देखा । उसको पूर्व वैर की स्मृति हो आयी। वह क्रोध से अरुण होकर चीत्कार करता हुआ तुम्हारे पास आया और अपने दंत-मूसल से तुम पर प्रहार करने लगा। तुम शक्ति. हीन थे। प्रतिरोध नहीं कर सके । तुम्हें मरणासन्न कर वह युवा हाथी बहुत प्रसन्न हुआ। वैर का प्रतिशोध ले सकने की प्रसन्नता से वह फूला नहीं समाया। चिंतातुर अवस्था में तुम्हारी मृत्यु हो गयी । वहां से तुम विंध्याचल पर्वत की तलहटी में गंगा नदी के दक्षिण तट पर फिर हाथी के रूप में उत्पन्न हुए। तुम युवा हुए। हस्तियूथ के स्वामी बने। तुम्हारे यूथ में सात सौ हाथी थे। एक बार तुमने दावाग्नि को देखा। मन एकाग्र हुआ। पूर्वभव की स्मृति हो आयी। दावाग्नि से उत्पन्न कष्ट साक्षात् हो गए। तुमने अपनी सुरक्षा के लिए एक योजन भूमि को समतल बनाया जिससे कि दावानल की आपत्ति से बचा जा सके। एक बार अचानक वन में आग लगी। सभी वन्य पशु भयभीत होकर जीवन की सुरक्षा के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे। तुम भी अपने परिवार के साथ उस सुरक्षित मण्डल में आ गए। और भी अनेक वन्य पशु वहां पहुंच गए थे। वहां अग्नि का भय नही
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