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२५२ : सम्बोधि
उनके स्मरण को भी स्वाध्याय के अन्तर्गत स्थान दे दिया।
शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन सार्थक नहीं है, ऐसा प्रतिपाद्य नहीं है। उनकी उपयोगिता है और वह सिर्फ इतनी ही है कि आप उनसे प्रेरणा प्राप्त कर स्वयं अनुभव की दिशा में पद-विन्यास करें। सिर्फ जाने-माने नहीं किन्तु निदिध्यासन करें। इस सदी के पश्चिम के महान साधक 'जार्ज गुरजिएफ' ने एक जगह जानबूझकर कहा है-'सबके भीतर आत्मा नहीं है । जो आत्मा को पैदा कर ले, उसी के भीतर आत्मा है। जिन लोगों ने समझाया, सबके भीतर आत्मा है, उन लोगों ने जगत् की बड़ी हानि की है।' मनुष्य ने मान लिया कि 'मैं आत्मा हूं।' अब उसे प्रगट करने का प्रश्न ही समाप्त हो जाता है। जब तक प्रत्यक्ष नहीं जानो तब तक सिर्फ इतना ही कहो कि-मानता हूं, जानता नहीं हूं। जिससे स्वयं के अज्ञान की
भी स्मृति बराबर बनी रहे, और संभवतः जानने के लिए चरण उद्यत हो जाएं।' . आचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा है- 'शास्त्र ज्ञान नहीं है, क्योंकि वे कुछ जानते नहीं हैं। इसलिए ज्ञान अन्य है और शास्त्र अन्य हैं।' शास्त्र सिर्फ संकेत हैं, उन सत्यद्रष्टा ऋषियों के दर्शन का। वह हमारा दर्शन नहीं है। __ स्वाध्याय के पांच प्रकार हैं-१. वाचना (पढ़ना) २. प्रच्छना ३. परिवर्त्तना [याद किए हुए पाठ को दोहराना] ४. अनुप्रेक्षा (चिन्तन) ५. धर्मकथा।
शिष्य ने पूछा-भंते ! स्वाध्याय का फल क्या है?
गुरु ने कहा-स्वाध्याय से ज्ञानावरण क्षीण होता है। उससे अनेक लाभ • सम्पन्न होते हैं।
स्वाध्याय का पहला लाभ है
हम कुछ समय तक बाह्य दुनिया से अलग-थलग हो जाते हैं। मन को कुछ क्षणों के लिए उसमें उलझा देते हैं ताकि वह अपनी पुरानी स्मृतियों का तानाबाना न बुने। यह अस्थायी चिकित्सा है, स्थायी नहीं। इसमें व्यक्ति पूर्णतया स्मृतियों, कल्पनाओं तथा संवेदनाओं से मुक्त नहीं होता।
स्वाध्याय का दूसरा लाभ है
वाचना, प्रच्छन्ना, परिवर्तना आदि से व्यक्ति बाह्य जानकारियां अधिक संग्रहित कर लेता है। उसके जानकारी का कोश बहुत अधिक बढ़ जाता है। जो ज्ञान नहीं होने वाला था वह हो जाता है। लेकिन इसका खतरा यह होता है कि व्यक्ति स्वयं में रिक्त होते हुए भी अपने को भरा हुआ समझने लगता है।
स्वाध्याय का तीसरा लाभ है
सत्य की दिशा में अनुगमन करना । 'अनुप्रेक्षा' उसका माध्यम है। शब्द और अर्थ की अनुप्रेक्षा करता हुआ व्यक्ति उसकी अन्तिम गहराई में प्रवेश कर पदार्थ · का सत्यबोध कर स्वयं में प्रविष्ट हो जाता है।
उस स्वाध्याय के मौलिक स्वरूप का दर्शन करें, जो कि हमारे जीवन को
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