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________________ (उनतीस) अध्याय १५ अकर्म-बोध (श्लोक ५६) ३३१-३६२१ १-२. आत्म-साधना परम कार्य। ३. आत्म-निरीक्षण । ४. सामायिक और भावना-संकल्पशक्ति का प्रयोग। ५. सम्यक्त्व के पांच भूषण। ६-६. श्रमणोपासक के चार विश्रामस्थल । १०. आत्मशोधन के तीन आलंबन--तीन मनोरथ। ११-१३. उपासना के दस फल। १४. अनासक्त । १५-१६. हिंसायुक्त कष्ट सहन : बन्धन का हेतु। १७. घृणा महामोह का हेतु। १८. उच्च-नीच का निषेध । १६. जाति या कुल शरण नहीं। २०-२५. आत्मा क्या है ? आत्मा का अमरत्व । २६. आत्मवादी कौन? २७. समान या असमान पाप कहने का निषेध । २८-३०. हिंसा किसकी? ३१. परिवर्तन : एक अनिवार्यता। ३२. दृश्य जगत् क्या है ? ३३. आत्मा अदृश्य भी दृश्य भी। ३४. आत्मविद् कौन ? ३५. मोक्ष का अधिकारी। ३६. ज्ञानी और आचारवान् । ३७. श्रुत-सम्पन्नता और शील-सम्पन्नता–मुक्ति का मार्ग । ३८. सर्वथा आराधक-विराधक कौन ? ३६-४३. त्यागने योग्य पांच भावनाओं का निरूपण । ४४. बोधि की दुर्लभता। ४५. बोधि की सुलभता। ४६-४६. कुम्भ की उपमा से उपमित चार प्रकार के व्यक्ति । ५०. भोजन की इच्छा उत्पन्न होने के चार कारण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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