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(अट्ठाईस)
८. रत्नत्रयी का पौर्वापर्य। ६. धर्म के विभागों का हेतु। १०. अनगार धर्म और अगार धर्म। ११. गृहस्थ धर्म का अधिकारी कैसे, एक प्रश्न । १२. मुमुक्षा भाव के बिना श्रामण्य नहीं। १३. गृहस्थ भी धर्म का अधिकारी-एक समाधान । १४. शक्ति के दो प्रकार-लब्धिवीर्य और करणवीर्य । १५. करणवीर्य के तीन प्रकार । १६. कर्म के एकार्थक शब्द । १७. सत् और असत् कर्म की निवृत्ति से मोक्ष । १८. क्रिया के पूर्ण निरीध का अभाव । १६. कर्म का मूल हेतु शरीर । करणीय का उपदेश ।
२०. गृहस्थ सत् प्रवृत्ति कैसे कर सकता है ? २१-२४. हिंसा के दो प्रकार और उनकी परिभाषा ।
२५. हिंसा कभी निर्दोष नहीं। २६. सम्यग्दृष्टि का कार्य । २७. अनासक्त मन से दृढ़ लेप नहीं । २८. बंधन के दो प्रकार-अविरति और प्रवृत्ति । २६. अहिंसक वह जो अविरति का त्याग करे । ३०. साधु कौन? ३१. दिगविरति व्रत। ३२. भोगोपभोग-परिमाण व्रत। ३३. अनर्थदण्ड-विरति व्रत। ३४. सामायिक व्रत। ३५. देशावकाशिक व्रत। ३६. पौषध व्रत। ३७. अतिथि-संविभाग व्रत।
३८. संलेखना का स्वरूप। ३६-४२. श्रावक की ग्यारह प्रतिमायें ।
४३. महान् दुःख-सुख क्या है ?
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