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१९६ : सम्बोधि
उपक्रम करता है, वह आत्महत्या नहीं है। आत्महत्या आवेश में होती है । आवेश या आवेग समाप्त हो जाने के बाद आप उसे मरने के लिए कहेंगे तो वह तैयार नहीं होगा। किंतु स्वेच्छापूर्वक शरीर के विसर्जन में कोई आवेश या आवेग नहीं है। मृत्यु चाहे आज आए या कल, उसे आप सर्वदा शान्त और प्रसन्न पायेंगे। मृत्यु उसके लिए भयावह नहीं है और न पीड़ा का कारण है।
यस्य किञ्चिद् व्रतं नास्ति, स जनो बाल उच्यते ।
व्रतावतं भवेद् यस्य, स प्रोक्तो बालपण्डितः ॥२२॥ २२. जिसके कुछ भी व्रत नहीं होता वह जीव 'बाल' कहलाता है। जिसके व्रताव्रत दोनों होते हैं (पूर्ण व्रत भी नहीं होता और पूर्ण अव्रत भी नहीं होता) वह 'बाल-पंडित' कहलाता है।
पण्डितः स भवेत् प्राज्ञो, यस्य सर्वव्रतं भवेत् । सुप्तः सुप्तश्च जाग्रच्च, जाग्रदुक्तविधानतः ॥२३॥
२३. जिसके पूर्ण व्रत होता है वह प्राज्ञ पुरुष 'पंडित' कहलाता है। पूर्वोक्त रीति के अनुसार पुरुषों के तीन प्रकार होते है : (१)सुप्त, (२) सुप्त-जागृत और (३) जागृत । अव्रती को सुप्त, व्रताव्रती को सुप्त-जागृत और सर्वव्रती को जागृत कहा जाता है।
एवमधर्मपक्षेपि धर्माधर्मेऽपि कश्चन । धर्मपक्षे स्थितः कश्चित्, विविधो विद्यते जनः ॥२४॥ २४. पक्ष तीन होते हैं : (१) अधर्म-पक्ष, (२) धर्माधर्म पक्ष, (३) धर्म-पक्ष । इन तीन पक्षों में अवस्थित होने के कारण पुरुष भी तीन प्रकार के होते हैं : (१)अधर्मी, (२)धर्माधर्मी, और (३) धर्मी।
प्राणियों के इन तीन विकल्पों का आधार आन्तरिक है। भेदों की मीमांसा यहां अभीष्ट नहीं है। साधक की दृष्टि अंतर्मुखी होती है। वह अंतर को देखता है। महावीर ने देखा-प्राणी अभी गहन अंधकार में पड़े हुए हैं। बहुत से मनुष्य भी तम की यात्रा पर चल रहे हैं, धर्म के प्रति उनमें कोई आकर्षण नहीं है। महावीर ने कहा-वे बाल हैं, बच्चे हैं, नादान हैं, अविवेकी हैं, वे संस्कारों के पाश में बद्ध हैं। उनका केन्द्र-बिन्दु बहिर्जगत् है।
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