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________________ १६० : सम्बोधि प्रस्तुत श्लोकों में भोजन करने और न करने के कारणों का उल्लेख है । भोजन करने के पांच कारण - १. क्षुधा को शांत करने के लिए । २. सेवा करने के लिए । ३. प्राणों को धारण करने के लिए । ४. संयम की सुरक्षा के लिए । ५. धर्म-चिन्ता करने के लिए । भोजन न करने के छह कारण१. रोग हो जाने पर । २. शरीर के प्रति विरक्ति हो जाने पर । ३. ब्रह्मचर्य - पालन के लिए । ४, दया के लिए । ५. संकल्प को दृढ़ करने के लिए । ६. प्रायश्चित्त के लिए । ये सभी कारण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए " निर्दिष्ट हैं । साधक एकमात्र शरीर - निर्वहन करने के लिए खाता है, रस-तुष्टि के लिए नहीं । पुरुषार्थ की अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन शरीर है। साधक के लिए उसकी सुरक्षा भी उतनी ही अपेक्षित है जितनी आत्मा की । शरीर के माध्यम से ही अशरीर की साधना की जाती है । बौद्ध ग्रन्थों में भी आहार करने की मर्यादा का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 'भिक्षु क्रीड़ा, मद, मंडन या विभूषा के लिए भोजन न करे किन्तु शरीर को रखने के लिए, रोग के उपशमन के लिए तथा ब्रह्मचर्य के पालन के लिए भोजन करे ।' अल्पवारञ्च भुञ्जानो, वस्तून्यल्पानि संख्यया । मात्रामल्पाञ्च भुञ्जानो, मिताहारो भवेद् यतिः ॥ ११ ॥ ११. जो मुनि एक या दो बार खाता है, संख्या में अल्प वस्तुएं और मात्रा में अल्प खाता है, वह मितभोजी है । जितः स्वादों जितास्तेन, विषयाः सकलाः परे । रसो यस्यात्मनि प्राप्तः, स रसं जेतुमर्हति ॥१२॥ १२. जिसने स्वाद को जीत लिया उसने सब विषयों को जीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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