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________________ प्रवृत्तिरात्रवः प्रोक्तो, निवृत्तिः संवरस्तथा । प्रवृत्तिः पञ्चधा ज्ञेया, निवृत्तिश्चापि पञ्चधा ॥४॥ ४. प्रवृत्ति आस्रव है और निवृत्ति संवर । प्रवृत्ति के पांच प्रकार हैं और निवृत्ति के भी पांच प्रकार हैं । अध्याय ८ : १५५. महावीर दुःख और दुःख मुक्ति का छोटा सा सूत्र बता रहे हैं । वे कहते हैं--- "कामना दुःख है । कामना के पार चले जाओ, दुःख से छूट जाओगे - 'कामे माहि, कमियंखु दुक्ख ।' प्रवृत्ति का जन्म इच्छा - राग-द्वेष से होता है । यही बन्धन है। जब उन पुद्गलों की अवस्थिति संपन्न होती है तब वे सुख-दुख के रूप में प्रकट होते हैं । और फिर मनुष्य तदनुरूप प्रवृत्ति में संलग्न हो जाते हैं । इस भवचक्र का उन्मूलन होता है अप्रवृत्ति -- निवृत्ति से । जिसे दुःख - मुक्ति प्रिय है उसे निवृत्ति का प्रयोग भी सीखना चाहिए । प्रवृत्ति' के पाँच प्रकार हैं और निवृत्ति' के भी पांच प्रकार हैं । प्रवृत्ति बांधती है और निवृत्ति मुक्त करती है। प्रवृत्ति मनुष्य की चिरसंगिनी है। उससे छूटना सहज नहीं है, किन्तु बिना छूटे बन्धन- - मुक्ति भी संभव नहीं है । साधना का लक्ष्य ही है - दुःख से मुक्त होना, निर्वाण को प्राप्त करना । उसमें बाधक हैंये पांच प्रवृत्तियाँ | ये पांचो ही तमोमयी हैं । इनसे जकड़ा हुआ व्यक्ति सत्य का दर्शन नहीं कर सकता । वह अनवरत बेहोशी का जीवन जीता है। जिसे कभी यह बोध भी नहीं होता कि मेरा जन्म क्यों है ? मैं कौन हूं ? एक विचारक ने कहा है – यदि विश्वविद्यालय लड़कों को मनुष्य नहीं बना सकते तो उनके अस्तित्व का कोई लाभ नहीं है । लड़के-लड़कियों को पहले यह मालूम होना चाहिए कि वे क्या हैं ? और किस उद्देश्य के लिए उनको जीना है ? प्रवृत्तियों के विश्लेषण में उतरने से पहले एक बात और समझ लेनी चाहिए कि प्रवृत्ति मात्र बाधक नहीं है । निवृत्ति के पथ पर व्यक्ति जब आरूढ़ होता है तब उससे पहले भी प्रवृत्ति चलती है, किन्तु वह बाधक नहीं बनती । - क्योंकि उस प्रवृत्ति की दिशा भटकाव वाली नहीं है । वह निवृत्ति के अभिमुख है । उसकी अन्तिम परिणति निवृत्ति है । जिस प्रवृत्ति का प्रवाह निवृत्ति के अभिमुख नहीं होता वह प्रवृत्ति मनुष्य को स्वयं से निरन्तर दूर ले जा रही है और ले जाती है । स्वयं से दूर होना ही संसार है । १. देखें - श्लोक ४ से १२ । २. देखें- श्लोक १८ से २३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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