SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * १५६ : सम्बोधि मिथ्यात्वञ्चाऽविरतिश्च प्रमादश्च कषायकः । सूक्ष्मात्माऽध्यवसायश्च, स्पन्दरूपाः प्रवृत्तयः ॥५॥ , ५. मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद और कषाय- ये चार सूक्ष्म अव्यक्त प्रवृत्तियां हैं । इनमें आत्मा के अध्यवसायों का सूक्ष्म स्पन्दन होता है। योगः स्थूला स्थूलबुद्धिगम्या प्रवृत्तिरिष्यते । स्वतन्त्रो व्यक्तिहेतुश्च ह्यव्यक्तानां चतसृणाम् ॥ ६ ॥ ६. योग स्थूल - व्यवत प्रवृत्ति है। वह स्थूल बुद्धि से जानी जा * सकती है । वह स्वतन्त्र भी है और पूर्वोक्त चारों सूक्ष्म प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति का हेतु भी है । मिथ्यात्वं वाविरतिर्वा, प्रमादो वा कषायकः । व्यक्तरूपो भवेद् योगो, मानसो वाचिकाऽङ्गिकौ ॥७॥ ७. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और इनका व्यक्त-रूपयोग, ये पांच आस्रव हैं । इनमें योग तीन प्रकार का है— मानसिक, वाचिक और कायिक 1 मिथ्यात्व - विपरीत श्रद्धा, तत्व के प्रति अरुचि । अविरति - पौद्गलिक सुखों के प्रति अव्यक्त लालसा । प्रमाद - धर्माचरण के प्रति अनुत्साह । कषाय - आत्मा की आन्तरिक उत्तप्ति । योग - मन, वचन और काया की प्रवृत्ति । प्रवृत्ति के पाँच प्रकार - प्रवृत्ति का पहला प्रकार है - मिध्यात्व | यह सबसे खतरनाक है। इसमें व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् नहीं होता । 'स्व' और 'पर' का भेद नहीं होता । बुद्ध की भाषा में यह 'अविद्या' आस्रव है। पतंजलि इसे अविद्या कहते हैं । अविद्या या मिथ्यात्व का उन्मूलन करना ही साधना का लक्ष्य है । धर्म की दिशा में यह प्रथम पदन्यास है । मिथ्यात्व की विद्यमानता में न तो तत्वों के प्रति श्रद्धा जागृत होती है और न सत्य के प्रति आकर्षण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy