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________________ अध्याय ७ : १५१ अनुकरण नहीं करता? उसके पास जो कुछ है वह सब अनुकृत है, उधार लिया हुआ है। यदि ठीक से हम अपने जीवन पर दृष्टिपात करें तो हमें पता चलेगा कि हमारी सारी शिक्षा-दिक्षा, संस्कार आदि परम्परागत हैं। अचौर्य व्रत के अभ्यास के लिए साधक को बहुत सजग होने की आवश्यकता होगी। उसे प्रतिक्षण पैनी दृष्टि से देखना होगा कि मेरा अपना क्या है ओर पराया क्या है ? मैं दूसरों की चीजों को अपनी कैसे मान रहा हूं। जब तक वह स्वयं में प्रवेश नहीं करे, तब तक वह उन सब वस्तुओं और संस्कारों का बहिष्कार करता जाए जो अपनी नहीं हैं, वह एक दिन अचौर्य को उपलब्ध हो जाएगा। कृतध्यानकपाटञ्च, संयमेन सुरक्षितम् । अध्यात्मदत्तपरिघं, ब्रह्मचर्यमनुत्तरम् ॥३६॥ ३६. ब्रह्मचर्य अनुत्तर धर्म है । संयम के द्वारा वह सुरक्षित है। उसकी सुरक्षा का किवाड़ है ध्यान और उसकी आगल है अध्यात्म । ब्रह्मचर्य भगवान् है, तपों में उत्तम तप है। ब्रह्मचर्य से देवता अमर बन जाते हैं । अथर्ववेद में नेता के लिए ब्रह्मचारी होना आवश्यक माना है। ऐतरेय उपनिषद् में कहा है- शरीर के समस्त अंगों में जो यह तेजस्विता है वह वीर्य-जन्य ही है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में ब्रह्मचर्य का अर्थ बहुत व्यापक किया है। ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूल है। कुंदकुंद कहते हैं- 'जो स्त्रियों के सुन्दर अंगों को देखते हुए भी विकार नहीं लाते वे ब्रह्मचारी हैं।' महात्मा गांधी कहते हैं-'ब्रह्मचर्य का अर्थ है समस्त इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण और मन, वचन, कृत्य द्वारा लोलुपता से मुक्ति ।' __ब्रह्म शब्द की व्युत्पत्ति पर ध्यान देने से ये सारे अर्थ उसी में सन्निहित हो जाते हैं । ब्रह्म का अर्थ है-आत्मा या परमात्मा । उसमें विचरण करने वाला ही वास्तविक ब्रह्मचारी है। जब आत्म-विहार से व्यक्ति बाहर चला जाता है तब न ब्रह्मचर्य सुरक्षित रहता है, न अहिंसा और न ध्यान । कृताकम्पमनोभावो, भावनानां विशोधकः । सम्यक्त्वशुद्धमूलोऽस्ति, धृतिकन्दोऽपरिग्रहः ॥४०॥ ४०. अपरिग्रह से मन की चपलता दूर हो जाती है, भावनाओं का शोधन होता है। उसका शुद्ध मूल है सम्यक्त्व और धैर्य उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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