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________________ (अठारह) ११-१२. सुख-दुःख का कर्त्ता - भोक्ता कौन ? १३. आत्मा के तीन प्रकार । १४- १७. सकर्मात्मा का स्वरूप और कार्य । १८-१६. आत्मा की विकृति का मूल हेतु है— मोहकर्म । अज्ञान और अदर्शन विकार के हेतु नहीं । २०-२५. मोहनीय कर्म की प्रधानता का प्रतिपादन । मोहनीय के क्षय होने पर अन्य कर्मों के क्षय की अनिवार्यता । २६-२८. मोह-क्षय का फल । २६. स्थिरता से निर्वाण | ३०. निर्मल चित्त की फलश्रुति । ३१. साधक को देव दर्शन कब होता है ? ३२. यथार्थ स्वप्न-द्रष्टा और उसकी फलश्रुति । ३३. अवधिज्ञान ( अतीन्द्रियज्ञान) का अधिकारी कौन ? ३४-३५. कर्म का कार्य और स्वरूप कथन । ३६. प्रवृत्ति का मूल हेतु-कर्म । ३७-३८. पूर्ण नैष्कर्म्य - योग ( शैलेशी अवस्था ) का निरूपण । ३६. सत्कर्मा- आत्मा का स्वरूप- कथन | ४०. शुभ 'कर्मों के उदय से क्या प्राप्त होता है । ४१. आत्मस्वरूप की प्राप्ति में शुभ-अशुभ कर्म - दोनों बाधक । ४२. पौद्गलिक सुख की खोज वास्तव में दुःख की खोज है । ४३. संबर और निर्जरा । ४४. जन्म-मरण का हेतु पूर्वकृत कर्म । ४५-४६. कर्म-बद्ध जीव को सुख-दुःख की प्राप्ति । ४७. इच्छा की नहीं, कृत की प्रधानता । ४८. महान् आनन्द -- मोक्ष की प्राप्ति कब ? ४६. अकर्मात्मा का स्वरूप । अध्याय ४ सहज - आनन्द (श्लोक ३० ) ७७-६० १५. निर्वाण में शरीर, वाणी और इन्द्रियों का अभाव है, चिन्तन शून्यता हैं, फिर आनन्द कैसे ? ६. कायिक, वाचिक और मानसिक सुख यथार्थं नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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