SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७. विषयों से विरक्त व्यक्ति शोक नहीं पाता । २८. रागी को इन्द्रिय-विषय दुख देते है, वीतरागी को नहीं । २६. विकार का हेतु आसक्ति । ३०. मोह और कषाय की अविच्छिन्नता । ३१. नो-कषाय । ३२-३३. दुःख न चाहते हुए भी दुःख क्यों ? ३४. इन्द्रिय-विषय मनोज्ञ और अमनोज्ञ कब और कैसे ? ३५. कामासक्ति का विसर्जन कैसे ? ३६-३७. वीतराग और मोक्ष । ३८-३९. धर्म करने वाला दुःखी और अधर्म करने वाला सुखी क्यों ? ४०-४३. धर्म और अधर्म का यथार्थ फल । ४४. पुण्य-पाप सुख-दुःख मे हेतुभूत होते ही हैं — ऐसी इयत्ता नहीं । ४५. पुण्य-पाप के उदय में हेतुभूत तथ्य । ४६. संपन्नता और दरिद्रता का हेतु धर्म या अधर्म नहीं । ४७-४८. धर्म का यथार्थं फल । ४६. आत्मौपम्यवाद सम्मत क्यों ? ५०-५३. आत्मौपम्यवाद की स्थापना । ५४. अहमिन्द्र की स्वीकृति से क्या कर्मवाद विघटित नहीं होगा ? ५५-६५. व्यवस्थाकृत सुख-दुःख और कर्मकृत सुख-दुःख की भिन्नता का प्रतिपादन तथा कषाय की उत्तेजना और क्षीणता से फलित व्यवस्था की बुराई और अच्छाई का दिग्दर्शन । अध्याय ३ पुरुषार्थ - बोध (श्लोक ४६ ) १. hi में धृति और अधृति के कारणों की जिज्ञासा । २- ३. कृत कर्मों का भोग अवश्यंभावी है—यह मानने वाला कष्टों में अधीर नहीं होता । ४. कष्टों को आमन्त्रण क्यों ? ५. कष्ट साध्य और अकष्ट साध्य मार्ग की फलश्रुति । ६. धर्म की आराधना का विवेक । ७. तपस्या की आराधना का विवेक । ८-१०. कष्टों में अधीर कौन होता है ? (सत्रह ) Jain Education International For Private & Personal Use Only ५२-७४ www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy