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(सोलह)
३७-३८. महावीर द्वारा मन को निश्चल बनाने का उपदेश ।
३६. मेघकुमार का श्रामण्य में पुनः स्थिरीकरण । ४०. पूर्व जन्म का साक्षात् दर्शन । ४१. संदेह-निवृत्ति के लिए पुनः जिज्ञासा।
अध्याय २ सुखबोध (श्लोक ६५)
२१-५० १. प्राप्त सुखों को छोड़ अप्राप्त सुखों के लिए कष्ट क्यों ? २-३. सुखासक्ति के दो दोष । ४. मेघकुमार का प्रश्न : सुख स्वाभाविक है फिर दुःख क्यों सहा ___ जाए? ५. पुद्गलजनित सुख वास्तव में दुःख है। ६. दृष्टिमूढ़ व्यक्ति का भव-भ्रमण । ७. चारित्रमोह का परिणाम । ८. मोह और तृष्णा । ६. जन्म-मरण का उपादान क्या है। १०. दुःख, तृष्णा, मोह और लोभ का नाश कैसे ? ११. राग, द्वेष और मोह के उन्मूलन का उपाय । १२. विषयों के अतिसेवन से विषयेच्छा की वृद्धि । १३. अतिभोजन अब्रह्मचर्य का हेतु । १४. राग-विजय के तीन उपाय । १५. शारीरिक और मानसिक दुःख का हेतु-विषयवृद्धि ।
१६. मानसिक स्वास्थ्य (समाधि) किसको? १७-१८. इन्द्रियां, मन और विषय।
१६. विषय नहीं, विषयासक्ति का निरोध संभव । २०. वीतराग कौन ? २१. एक मूढ़ता से दूसरी मूढ़ता-मूढ़ता का अन्तहीन चक्र। २२. यथार्थता। २३. वर्तमान-द्रष्टा और परिणाम-द्रष्टा का अन्तर । २४. कपट और झूठ की वृद्धि का उपादान । २५. माया और असत्य का चक्रव्यूह । २६. द्विष्ट मन ही दुःखों का कारण ।
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