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तृतीय संस्करण
संबोधि दिशा-बोध है, गति नहीं है । विश्व का महान् से 'महान् ग्रंथ दिशाबोध दे सकता है, गति नहीं दे सकता । गति अपने समाहित पुरुषार्थ से लब्ध होती है ।
आचार्यश्री ने दिल्ली चातुर्मास सं० २०२२ में, एक अर्जेन्टाइना की महिला It ' संबोध' का अंग्रेजी अनुवाद दिखाया । उसने वह पढ़ा। उसे दिशा-बोध मिला । उसने 'स्पेनिश' भाषा में उसका अनुवाद कर डाला। और भी अनेक लोगों को इससे दिशा-बोध मिला है, गति स्फूर्त हुई है । तृतीय संस्करण पुस्तक का हो रहा है । मैं चाहता हूं कि हमारे मन का भी तृतीय संस्करण हो ।
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अणुव्रत विहार
दिल्ली १-८-८१
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युवाचार्य महाप्रज्ञ
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