SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (दस) आलोक में ज्ञान सम्यक् होता है। संक्षेप में इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य इतना ही है। विस्तार-दृष्टि से इसके १६ अध्याय हैं और ७०३ श्लोक । आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानाङ्ग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, प्रश्नव्याकरण, दशाश्रुतस्कंध आदि आगमों से सार संग्रहीत कर मैंने इसका प्रणयन किया है। गीता-दर्शन में ईश्वरार्पण की जो महिमा है, वही महिमा जैन-दर्शन में आत्मार्पण की है। जैनदृष्टि के अनुसार आत्मा ही परमात्मा या ईश्वर है। सभी आत्मवादी दर्शनों में ध्येय की समानता है। मोक्ष या परमात्मपद में चरम परिणति आत्मवाद का चरम लक्ष्य है। साधनों के विस्तार में जैन-दर्शन समता को सर्वोपरि स्थान देता है । संयम, अहिंसा, सत्य आदि उसी के अङ्गोपाङ्ग है। ___'गीता' का अर्जुन कुरुक्षेत्र के समराङ्गण में क्लीव होता है तो 'सम्बोधि' का मेघकुमार साधना की समरभूमि में क्लीव बनता है। 'गीता' के गायक योगिराज कृष्ण हैं और 'सम्बोंधि' के गायक हैं भगवान् महावीर । ___अर्जुन का पौरुष जाग उठा कृष्ण का उपदेश सुनकर और महावीर की वाणी सुन मेघकुमार की आत्मा चैतन्य से जगमगा उठी। दीपक से दीपक जलता है। एक का प्रश्न दूसरे को प्रकाशित करता है। मेघ ने जो प्रकाश पाया, वही प्रकाश यहां व्यापक रूप में है। कभी-कभी ज्योति का एक कण भी जीवन को ज्योतिर्मय बना देता है। इस ग्रंथ का अनुवाद सहज, सरल और संक्षिप्त है। भगवान् का दृष्टिकोण बहुत ही सहज है, पर जो जितना सहज है वह उतना ही गहन बन जाता है। यह गहराई उसका सहज रूप है, तैरनेवाले को भले वह असहज लगे। गहराई को नापने के लिए विशद व्याख्या की अपेक्षा है। उसकी आंशिक पूर्ति मुनि शुभकरणजी तथा मुनि दुलहराजजी द्वारा कृत इस व्याख्या से होती है। मैं सरल संस्कृत लिखने का अभ्यासी नहीं हूं, पर इसके भाषा-सारल्य पर आचार्यश्री ने मुझे साश्चर्य आशीर्वाद दिया, इसे मैं अपने जीवन की सफलता का प्रकाश-स्तम्भ मानता हूं। इसके आठ अध्याय मैंने आचार्यश्री की बम्बई यात्रा (सन् १९५३५४) के समय बनाए थे और आठ अध्याय बनाए कलकत्ता यात्रा के समय (सन् १६५६-६० ई०)। इस प्रकार दो महान् यात्राओं के आलोक में इसकी रचना भगवान की वाणी से मैंने जो पाया, उसे भगवान् की भावना में ही प्रस्तुत कर मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं। युवाचार्य महाप्रज्ञ (मुनि नथमल) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy