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कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ?
वह पल्लवित हो जाएगा। जिसे प्यार नहीं मिलेगा, पानी नहीं मिलेगा, वह पौधा सूख जाएगा।
स्मृति पर खोज करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि हमारी स्मृति के रसायन बड़े अद्भुत हैं । एक रसायन को आप हजार बार बल दें वह पुष्ट जगा और यह बात 20-30 वर्ष तक बराबर आपकी स्मृति में बनी रहेगी । यदि उसको बल नहीं मिलेगा तो वह रसायन कमजोर पड़ता चला जाएगा और विस्मृति की मात्रा बढ़ती चली जाएगी ।
प्रश्न है आवृत्ति का प्रश्न है पल्लवन का और प्रश्न है उसे पोषण मिलने का । हम उन केन्द्रों को यदि पल्लवित करते हैं, उनको छूते हैं तो अवश्य ही घृणा की भावना कम होती है और प्रेम का विकास होता है ।
प्रेक्षाध्यान का एक प्रयोग है - ज्योति केन्द्र प्रेक्षा । यदि ज्योति केन्द्र पर हम ध्यान करेंगे, बार-बार उसका अनुभव करेंगे तो प्रेम, मैत्री और संवेदनशीलता की भावना बढ़ेगी। यदि हमारा ध्यान ज्यादा पेट की ओर जाएगा, नाभि के आस-पास परिक्रमा करेगा तो क्रूरता की भावना, उद्दण्डता की भावना और घृणा की भावना को बल मिलता रहेगा। इसलिए हम किसको छुएं, किसको अनछुआ रखें, यह जानना बहुत आवश्यक है ।
आचार्य भिक्षु ने बहुत महत्त्वपूर्ण बात लिखी है। उन्होंने कहा- एक व्यक्ति ने दो बीज बोए, एक आम का और दूसरा धतूरे का । दोनों पास-पास में थे। उसने अपने लड़के को कहा कि पौधों को सींचना है। लड़का भोला था, नासमझ था । वह धतूरे के बीज पर बहुत पानी डालता, उसकी रखवाली करता, खूब सार-संभाल करता किन्तु आम के पौधे को न पूरा पानी देता, न रखवाली करता, पूरा ध्यान भी नहीं देता । परिणाम यह हुआ कि आम का पौधा मुरझा गया और धतूरे का पौधा चमक उठा ।
प्रश्न है - हम धतूरे के पौधे को ज्यादा पानी दे रहे हैं या आम के पौधे को? हम किसकी ज्यादा सार-संभाल कर रहे हैं? जिस पर अधिक ध्यान देंगे; वह ज्यादा विकसित होगा और जिस पर कम ध्यान देंगे, वह सिकुड़
जाएगा ।
आस्था का निर्माण किया जाए
हमारा ध्यान आज कहां है? ध्यान प्रेम के पौधे पर है या घृणा के पौधे पर? हम पानी कहां सींच रहे हैं? हमारे लिए यह बहुत ज्वलंत प्रश्न है । पानी तो सींच रहे हैं घृणा के पौधे पर और हम चाहते हैं कि अमन से रहें, शान्ति से रहें, कहीं आतंक न हो, कहीं हिंसा न हो, लूट-खसोट न हो, अपराध न
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