________________
स्वस्थ समाज रचना
महावीर ने कहा-तुला का अन्वेषण करो। प्रश्न होता है-तुला क्या है? उसका निरीक्षण-अन्वेषण कैसे करें? आचारांग का महत्त्वपूर्ण सूक्त है
जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ।
जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाणइ।। जो अपने आपको जानता है, वह दूसरों को जानता है। जो दूसरे को जानता है, वह अपने आपको जानता है।
कल्पना करें-दो जीव हैं। एक व्यक्ति स्वयं है और एक दूसरा आदमी है। व्यक्ति पहले अपने आपको देखे। वह सोचे-मुझे किसी ने गाली दी तो मुझ पर क्या प्रतिक्रिया हुई? मेरा मन कैसा बना? मेरे मन में क्या भावना आई? वह उसका निरीक्षण करे। उसी व्यक्ति ने सामने खडे व्यक्ति को गाली दी। वह देखे-उस व्यक्ति के भीतर क्या प्रतिक्रिया हो रही है? जो अपने भीतर प्रतिक्रिया हुई क्या वैसी ही दूसरे के भीतर प्रतिक्रिया हुई? या अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया हुई? व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया को पढ़े और उसके सन्दर्भ में पुनः अपने आपको देखे, देखता चला जाए।
गर्मी के मौसम में एक व्यक्ति ठण्डी हवा के झोंकों के बीच बैठा है। ठण्डी हवा से उस व्यक्ति को सुख मिला। तुम्हें कैसा लगा? सामने वाले को ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तो उसे कैसा लगा? तुम्हें गर्म हवा लगी तो तुम्हें कैसा लगा? और उसे गर्म हवा लगी तो उसे कैसा लगा? हम इस नियम को आगे बढ़ाएं। कल्पना करें-बहुत गर्मी का मौसम है। एक ही कमरा है और उसमें एक ही दरवाजा है। एक व्यक्ति उस दरवाजे में जाकर बैठ गया। उसे वहां बैठना कैसा लगेगा? तुम्हें कैसा लगेगा?
तुम इस नियम को पढ़ो, इस घटना का निरीक्षण करो। इसका अर्थ है-अपने एवं सामने वाले व्यक्ति के सुख-दुःख के संवेदन को पढ़ना। तुम पढ़ो, निरीक्षण करो, पढ़ते चले जाओ, निरीक्षण करते चले जाओ। पढ़ते-पढ़ते, निरीक्षण करते-करते एक क्षण वह आएगा, जब तुम आत्म-तुला को साक्षात कर लोगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org