SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न है परिष्कार का है - नाभि से गुदा तक का स्थान, उपस्थ का स्थान। यह अपान का स्थान है । जब अपान पर प्राण का नियन्त्रण रहता है तब वृत्तियां शांत रहती हैं । जब अपान पर प्राण का नियंत्रण कम हो जाता है तब अधोगामी वृत्तियां सक्रिय होने लगती हैं । 49 यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो यह स्पष्ट होता है कि विज्ञान की भी वही निष्पत्ति है और योग की भी वही निष्पत्ति है। दोनों की निष्पत्ति एक है। दीर्घश्वास से अपान पर नियंत्रण साधा जाता है । यदि विद्यार्थी को इसका सम्यग् अभ्यास करा दिया जाता है तो वह प्रारम्भ से ही बुरी आदतों में नहीं फंसेगा। वह बुराइयों से बच जाएगा। एक प्रश्न आता है-बुरे बिचार बहुत आते हैं, उन्हें रोकने का क्या कोई उपाय है? इसका सीधा-सा उपाय है-दस मिनिट तक दीर्घश्वास का प्रयोग । एक मिनिट में दो श्वास लें, समस्या हल हो जाएगी। जब-जब बुरे विचार, निम्न वृत्तियां, वासनाएं आक्रमण करती हैं तब-तब दीर्घश्वास का प्रयोग कर इनको रोका जा सकता है। संवेदन- नियंत्रण का एक उपाय है-प्राणकेन्द्र पर ध्यान करना, यानी नासाग्र पर ध्यान करना । नाक का वासनाओं के साथ गहरा संबंध है । कान और नाक का विकारों के साथ संबंध है । मस्तिष्क का एक भाग है - एनिमल ब्रेन। इसी के कारण मनुष्य में पाशविक वृत्तियां उभरती हैं । उसका सम्बन्ध नाक और इन्द्रियों के साथ है। प्राचीन आचार्यों ने इसका अनुभव किया और इस पर विजय पाने के लिए उन्होंने नासाग्र पर ध्यान करने की बात कही । भगवान महावीर की ध्यानमुद्रा में दोनों आँखें नाक पर टिकी देखी जाती हैं । हम किसी भी दृष्टि से सोचें - बौद्धिक विकास के लिए या भावनात्मक विकास के लिए, जीवन की सफलता के लिए या सह-अस्तित्व की सफलता के लिए हमें संवेदों पर नियंत्रण करना होगा। यह एक उपाय है। अनुपाय कुछ भी नहीं । जिसके पास उपाय नहीं है, वह हजार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो सकता। जिसके पास उपाय है, वह थोड़े समय में ही सफलता की मंजिल तक पहुंच जाता है। इसलिए उपाय को खोजें, अपनाएं और मंजिल तक पहुंचें। संवेदों पर नियंत्रण पाने का मार्ग सबके लिए कल्याणकारी है । यदि विद्यार्थी को उपाय और परिणाम-बोध से परिचित करा दिया जाए तो न केवल विद्यार्थी जीवन अच्छा होगा, सामाजिक जीवन भी अच्छा होगा । इस प्रकार हम नई समाज-व्यवस्था में विद्यार्थी को एक घटक के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं, नया मार्ग और नई दिशा उसके सामने रख सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy