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________________ 38 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? श्वास । लयात्मक श्वास के द्वारा मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाती है। जब मस्तिष्क कार्यरत होता है, तब शरीर को तिगने ऑक्सीजन की जरूरत होती है। लयबद्ध श्वास के द्वारा मानसिक और भावात्मक तनाव कम होता है और ध्यान अपने भीतर की ओर आकर्पित होता है। पाठ पढ़ते समय श्वास का संयम (कुम्भक) हो तो वह अधिक प्रभावी बनता है। जीवन विज्ञान मस्तिष्क प्रशिक्षण की पद्धति है। उसके तीन अंग हैं 1. संवेद नियंत्रण पद्धति 2. संवेग नियंत्रण पद्धति 3. विचार नियंत्रण पद्धति। इसके साध्य तत्त्व सात हैं 1. श्वास नियंत्रण 2. शरीर नियंत्रण 3. चैतन्य केन्द्र जागरण 4. स्वभाव परिवर्तन 5. आभामंडलीय निर्मलता 6. सामुदायिक चेतना का, विकास 7. रचनात्मक शक्ति का विकास। इसके साधक तत्त्व पांच हैं 1. श्वास प्रेक्षा 2. शरीर प्रेक्षा 3. चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा 4. अनुप्रेक्षा (संदेश और अनुचिन्तन) 5. लेश्याध्यान (आभामण्डल का ध्यान)। अनुप्रेक्षा मस्तिष्क प्रशिक्षण की प्रक्रिया है। उसमें पुनरावृत्ति की जाती है। संस्कार निर्माण के लिए एक मास से तीन मास तक प्रतिदिन 50 से 100 आवृत्तियां की जाती हैं। शिक्षण के लिए 32 से 50 आवृत्तियां करना आवश्यक है। मस्तिष्क प्रशिक्षण प्रणाली के द्वारा मस्तिष्क और शरीर को प्रतिदिन नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके द्वारा व्यवसाय, खेलकूद, अन्तरिक्ष यात्रा, समुद्र यात्रा, पर्वतारोहण आदि विभिन्न क्षेत्रों के कठिन प्रतीत होने वाले कार्य सरलतापूर्वक किये जा सकते हैं। इस प्रणाली के द्वारा अन्तःप्रज्ञा (इन्ट्यूशन) को विकसित कर अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जा सकते हैं। व्यवसाय प्रबन्धक, राजनयिक, प्रशासनतंत्र के अधिकारी, न्यायाधीश और कार्यपालिका के सदस्य-ये सभी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। पुलिस और सेना के लिए भी इनका बहुत मूल्य है। एकाग्रता, संकल्पशक्ति, नियंत्रण की क्षमता और स्वभाव की पुनर्रचना-ये जीवन की उपलब्धियां हैं। जीवन विज्ञान के प्रयोग द्वारा इन्हें प्राप्त किया जा सकता है। असंतुलित संवेगः आपराधिक वृत्तियां मनुष्य में मौलिक मनोवृत्तियां और संवेग होते हैं। संवेग जीवन को बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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