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________________ प्रश्न है परिष्कार का 37 दुर्बल चिड़चिड़ा विधेयात्मक (आचार/व्यवहार) भाव व्यक्तित्व परिणाम विश्वास उत्साही सफलता अभय आशावादी समादर धैर्य प्रसन्न निश्चितता सहिष्णुता तनावमुक्त आंतरिक शांति मृदुता विनयशील मैत्री श्रद्धा सहृदय स्वस्थता निष्ठा सहानुभूतिपूर्ण सुख सामंजस्य वीरतापूर्ण विकास पारस्परिक समझ अनुशासनबद्ध साहस निषेधात्मक घृणा कुण्ठा ईर्ष्या कठोर निराशा संदेह उद्दण्ड लाचारी लोभ नीरस उद्विग्नता माया दुःख दीनता/हीनता रूखा असफलता छिद्रान्वेषण आलसी रुग्णता अहं डांवाडोल दरिद्रता आग्रह धोखेबाज थकावट द्वेष स्वार्थी ऊब जीवन-विज्ञान के द्वारा विधेयात्मक भाव का विकास कर निषेधात्मक भाव से मुक्ति पाई जा सकती है। ___ तनाव की अवस्था में ग्रहणशीलता और स्मृति प्रभावित होती है। जीवन विज्ञान तनावमुक्ति की प्रक्रिया है। इससे ग्रहण की क्षमता बढ़ती है, स्मृति का संवर्धन और बौद्धिक विकास होता है। विद्यार्थी को कायोत्सर्ग (शिथिलीकरण) की अवस्था में पढ़ाया जाए तो वह अपने विषय को शीघ्र ग्रहण कर सकता है। यह शिक्षा की सद्योग्रहण पद्धति है। इसमें विद्यार्थी को तन्द्रा की अवस्था में ले जाना और अध्यापक द्वारा पाठ का लयबद्ध उच्चारण करना बहुत अपेक्षित है। वह उच्चारण सुझाव (सजेशन) के रूप में प्रस्तुत किया जाए। इसमें संदेश-पद्धति बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। उसके द्वारा चेतन और अचेतन मन के बीच संवाद स्थापित किया जा सकता है। स्मृति-संवर्धन और ग्रहण-क्षमता का मौलिक आधार है-लयबद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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