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________________ 36 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? उत्तरदायी है। जीवन विज्ञान की शिक्षा-प्रणाली इन दोनों के संतुलित विकास की पद्धति है। अनुकंपी नाड़ीतंत्र (पेरासिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम) की अति सक्रियता से व्यक्ति आक्रामक, उद्दण्ड बनता है, बेचैनी का अनुभव करता है। परानुकंपी नाड़ीतंत्र (सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम) की अति सक्रियता से व्यक्ति डरपोक, दब्बू, हीनभावना से ग्रस्त होता है। यह स्नायविक असंतुलन है। जीवन विज्ञान इन दोनों के संतुलन की पद्धति है। विवेक (रीजनिंग माइंड) और संवेग (इमोशन) में संघर्ष होता रहता है। विवेक कहता है-यह काम गलत है, नहीं करना है। संवेग प्रबल होता है, उसे करा देता है। इसलिए ज्ञान और आचरण की दूरी बनी रहती है। जीवन विज्ञान संवेग-नियंत्रण की पद्धति संवेद (सेंस एनर्जी) निरन्तर क्रियाशील रहते हैं। इससे शक्ति का बहुत अपव्यय होता है। अति सक्रियता से मस्तिष्क और मेरुदण्ड प्रणाली पर दबाव पड़ता है। उससे स्वचालित नाड़ीतंत्र की प्रणाली पर दबाव पड़ता है। जीवन विज्ञान संवेद-नियंत्रण की पद्धति 8. प्रमस्तिष्क (सेरेब्रम) में शक्ति संचित है। अनुमस्तिष्क (सेरेबलम) उसका नियंत्रण करने वाला है। उसके द्वारा शक्ति प्रवाहित होकर सुषुम्ना शीर्ष (मेडुला आंबलागेटा) में जाती है। वहां से यह मेरु में जाती है। वहां से शरीर की सारी प्रक्रियाएं चालू होती हैं। जीवन विज्ञान के द्वारा चेतना-प्रक्रिया (कांसस एक्टिविटी) को कम कर बिंब प्रक्रिया (रिफ्लेक्स एक्टिविटी) को बढ़ाया जा सकता है, जिससे मस्तिष्क पर दबाव न पड़े। 9. पीनियल ग्लेंड की निष्क्रियता से नियंत्रण की क्षमता कम हो जाती है। थाइमस ग्लेंड की निष्क्रियता से आनन्द की अनुभूति में कमी आ जाती है। बाहर की ओर झुकाव बढ़ जाता है। 10. व्यवहार और आचरण का मुख्य आधार भावधारा है। भाव दो भागों में विभक्त है-विधेयात्मक (पोजिटिव) और निषेधात्मक (निगेटिव)। मनोविज्ञान के अनुसार इसका विश्लेषण इस प्रकार है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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