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प्रश्न है परिष्कार का
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विजय प्राप्त कर साम्राज्य की स्थापना की थी। लगता है-उस वैर को याद करती हुई इन्द्रियों ने तुम्हें पराजित कर दिया और वह साम्राज्य आज शीशे के महल की भांति टूट गया।'
जैसे मार्क्स ने अर्थ-व्यवस्था की विसंगतियों का अध्ययन कर एक समीचीन अर्थ-व्यवस्था की रूपरेखा प्रस्तुत की थी वैसे ही काम-व्यवस्था की निरंकुशता का अध्ययन कर उसकी समीचीनता का प्रतिपादन आवश्यक है। काम और अर्थको विभक्त कर समीचीनता के सूत्र को नहीं पकड़ा जा सकता। स्वस्थ समाज की रचना के लिए अर्थ-व्यवस्था पर ध्यान देना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है काम-व्यवस्था पर ध्यान देना।
काम मनुष्य की दैहिक मांग और भावात्मक प्रेरणा है। अर्थ-संग्रह दैहिक मांग नहीं है। वह एक मनोवृत्ति और भावात्मक प्रेरणा है। दैहिक, मानसिक
और भावात्मक प्रेरणाओं का सामंजस्य स्थापित किए बिना समाज को अपराधमुक्त नहीं किया जा सकता। ___अर्थ का विनिमय हो सकता है इसलिए वह सामाजिक तत्त्व है। काम वैयक्तिक है। उसकी व्यवस्था कैसे की जाए? कौन करे? यह एक जटिल प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर भी खोजा गया है। काम के द्वारा पैदा की जाने वाली सामाजिक समस्या अपराध है और व्यवस्था-भंग मानव जाति के लिए सिरदर्द है। इसलिए उस पर नियंत्रण करने के मार्ग समाज और धर्म दोनों स्तरों पर खोजे गए। काम की उच्छृखलता पर अंकुश लगाने के लिए समाज के पास एक दंड-संहिता है और धर्म के पास एक आचार-संहिता है। दण्ड-संहिता से परिष्कार नहीं होता। उसमें भय पैदा करने की क्षमता है। भय निरोध का प्राथमिक मार्ग है। आचार-संहिता से हृदय-परिवर्तन होता है किन्तु उसका प्रभाव दीर्घकालिक नहीं होता। परिष्कार के लिए प्रशिक्षण और प्रयोग सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। जीवन विज्ञान और मस्तिष्क प्रशिक्षण
1. मस्तिष्क में असीम शक्ति है। 2. उसको जागृत किया जा सकता है। 3. शक्ति की जागृति तनाव और थकान के बिना की जा सकती
मस्तिष्क विद्या के अनुसार मस्तक का बायां भाग तर्क, गणित, भाषा और भौतिक विचार के लिए उत्तरदायी है। उसका दायां भाग आध्यात्मिक जागृति, अन्तःप्रज्ञा, स्वप्न और कल्पना के लिए
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