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________________ प्रश्न है परिष्कार का काम और अर्थ समाज को बनाने और बिगाड़ने वाले हैं। अर्थ-व्यवस्था पर अनेक विचारकों ने विचार किया है। कार्ल मार्क्स जैसे चिन्तकों ने अर्थ-व्यवस्था को नया रूप देने का प्रयत्न किया। यदि उसके साथ काम-व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता तो साम्यवादी अर्थ-व्यवस्था उत्थान से पहले उपहत नहीं होती। काम का एक अर्थ है-काम वासना (सेक्स)। उसका दूसरा अर्थ है-अधिकार, संग्रह और उपभोग की इच्छा। अनियंत्रित काम-व्यवस्था अनियंत्रित अर्थ-व्यवस्था से कम खतरनाक नहीं होती। __ जीवन के चार आयतन हैं-काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष। काम पहला आयतन है। काम भीतर रहता है। उसकी अभिव्यक्तियां बाहर में होती हैं। काम की जैसी अभिव्यक्ति होती है, वैसी आकृति बन जाती है और वैसा ही श्वास बन जाता है। भीतर काम का एक चक्र चलता रहता है और उसके आधार पर सारे परिवर्तन घटित हो जाते हैं। जिस व्यक्ति ने काम का परिष्कार नहीं किया, वह अशांति, असंतोष, अप्रसन्नता और अस्थिरता का जीवन जीएगा। जिस व्यक्ति ने काम का परिष्कार कर लिया, वह शान्ति, संतोष, प्रसन्नता और स्थिरता का जीवन जीएगा। प्रश्न है परिष्कार का। इस शरीर में रहने वाला, इन्द्रिय और मन के जगत में जीने वाला कोई भी व्यक्ति सर्वथा अकाम बन जाए, सर्वथा कामना से मुक्त हो जाए, यह कल्पना नहीं की जा सकती। यह सोचा जा सकता है कि किस व्यक्ति ने कितना परिष्कार किया है, कितना शोधन किया है। शोधन का सिद्धान्त संभव बनता है, अकाम का सिद्धान्त सम्भव नहीं बनता। अकाम की स्थिति वीतराग की स्थिति है। जब वह स्थिति प्राप्त होती है, तब व्यक्ति सांसारिक सम्बन्धों से मुक्त हो जाता है। उसका प्रस्थान दूसरे संसार के लिए हो जाता है। दो बातें हैं। एक है कामना की पूर्ति और दूसरी है कामना का परिष्कार। कामना की पूर्ति का साधन है-अर्थ। यह जीवन का दूसरा पुरुषार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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