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आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य
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ध्यान संवेदनशीलता को जगाने की प्रणाली है। जीवन की जितनी प्रणालियां हैं-आर्थिक प्रणालियां और राजनतिक प्रणालियां-इन सबके दोषों का परिमार्जन करने वाली प्रणाली है-ध्यान की प्रणाली।
ध्यान का मूल प्रयोजन है-चेतना का रूपान्तरण, वृत्तियों का परिष्कार। इनमें पहला परिष्कार है लोभ का, स्वार्थ का।
विषय के निगमन में पक्ष की सहेतुक पुनरावृत्ति होती है। तर्कशास्त्र के इस सिद्धान्त के आधार पर यह कहना मुझे इष्ट होगा-इन्द्रियतृप्ति, मन की तुष्टि, सुविधावादी दृष्टिकोण और अधिकार की मौलिक मनोवृत्ति का परिष्कार किए बिना आर्थिक विकास सुखद नहीं हो सकता, आर्थिक असदाचार को मिटाया नहीं जा सकता, शोषण की इति नहीं हो सकती और स्वस्थ समाज की रचना नहीं हो सकती।
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