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________________ आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य 27 ध्यान संवेदनशीलता को जगाने की प्रणाली है। जीवन की जितनी प्रणालियां हैं-आर्थिक प्रणालियां और राजनतिक प्रणालियां-इन सबके दोषों का परिमार्जन करने वाली प्रणाली है-ध्यान की प्रणाली। ध्यान का मूल प्रयोजन है-चेतना का रूपान्तरण, वृत्तियों का परिष्कार। इनमें पहला परिष्कार है लोभ का, स्वार्थ का। विषय के निगमन में पक्ष की सहेतुक पुनरावृत्ति होती है। तर्कशास्त्र के इस सिद्धान्त के आधार पर यह कहना मुझे इष्ट होगा-इन्द्रियतृप्ति, मन की तुष्टि, सुविधावादी दृष्टिकोण और अधिकार की मौलिक मनोवृत्ति का परिष्कार किए बिना आर्थिक विकास सुखद नहीं हो सकता, आर्थिक असदाचार को मिटाया नहीं जा सकता, शोषण की इति नहीं हो सकती और स्वस्थ समाज की रचना नहीं हो सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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