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________________ कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? भी करुणाशील व्यक्ति शोषण नहीं कर सकता। शोषण वही कर सकता है जिसमें क्रूरता है, दूसरे के प्रति सहानुभूति नहीं है। वह यही सोचता है कि दूसरा मरे तो भले ही मरे, मुझे क्या? इस क्रूरता को जन्म देने में अर्थ-व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ है। ज्ञान और संवेदन - चेतना के दो आयाम हैं-ज्ञान और संवेदन। संवेदन का आयाम समाज-व्यवस्था के लिए आधारभूत सूत्र बनता है। जिस समाज में संवेदनशीलता का धागा नहीं होता, वह नृशंस लोगों का समाज बन जाता है। जिस समाज में यह सूत्र नहीं होता, वह हिंस्र पशुओं का समाज बन जाता है। मनुष्य का इसीलिए विकसित, सहयोगशील समाज बना कि इसमें संवेदना है। इसी के आधार पर आज हजारों-हजारों आदमी साथ में रहते हैं। यदि मनुष्य में कोरी बुद्धि होती, कोरा ज्ञान होता और संवेदना नहीं होती तो वह ज्ञान विध्वंसकारी ही होता। जिस वैज्ञानिक ने अणु-अस्त्रों का निर्माण किया उसने सबसे पहले मानवीय संवेदना को काट कर अलग रख दिया और फिर अस्त्रों का निर्माण किया। यदि उस वैज्ञानिक में मानव जाति के प्रति संवेदना होती तो ऐसा जघन्य कार्य कभी नहीं करता। मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है-संवेदनशीलता। जिन-जिन में अध्यात्म जागा है, उनमें संवेदनशीलता अवश्य जागी है। उनमें करुणा का प्रवाह फूटा है और वे समता से ओतःप्रोत हुए हैं। वह व्यक्ति फिर किसी का अनिष्ट नहीं कर सकता, धोखा नहीं दे सकता, किसी की भूमि या सम्पत्ति नहीं हड़प सकता, अनैतिकता नहीं कर सकता आदि-आदि। संवेदनशीलता को जगाएं __हम संवेदनशीलता को जगाएं। वह इतनी व्यापक बन जाए कि पूरा मानव समाज ही नहीं, पूरा प्राणी जगत् उसमें समा जाए। इतना होने पर ही क्रूरता धुल सकती है। अन्यथा बाप बेटे को और बेटा बाप को, सास बहू को और बहू सास को मार सकती है। कोई रोकने वाला नहीं है। जब संवेदना रुक जाती है तब कौन किसको नहीं मार सकता? सब सबको मार सकते हैं। संवेदना के अभाव में संबंध टिकता ही नहीं। आदमी बदले, यह मूल बात है। इसका तात्पर्य है कि उसमें रही हुई क्रूरता बदले, शोषण की वृत्ति बदले, नयी चेतना का निर्माण हो। सबसे अधिक अनर्थ करने वाली दो वृत्तियां हैं-लोभ की वृत्ति और स्वार्थ की वृत्ति। ये जन्म देती हैं क्रूरता को। संवेदनशीलता से ही ये बदल सकती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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