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________________ आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य अवश्य ही जनतान्त्रिक समाजवादियों में सत्ता के विकेन्द्रीकरण, चौखम्बा राज्य तथा इसी प्रकार की अन्य धारणाओं के संबंध में अस्पष्ट चर्चाएं होती थीं । किन्तु देखा गया कि असल में उनका एकमात्र ध्येय सत्ता पर कब्जा करने का था । लगता है उनका विश्वास था कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण भी पहले सत्ता के वर्तमान केन्द्रों को जीत कर अपने कब्जे में कर लेने के उपरान्त ही संभव होगा, क्योंकि उस समय विकेन्द्रीकरण और संस्था - विघटन कानून बनाकर किया जा सकता है। लेकिन वे इस प्रक्रिया की निरर्थकता को समझ नहीं पाये। ऊपर से लोगों के हाथ में सत्ता बांटकर विकेन्द्रीकरण नहीं किया जा सकता, खासतौर से जब लोग राजनीतिक दृष्टि से बिल्कुल कुचल दिये गये हों और दल प्रथा तथा सत्ता के केन्द्रीकरण के कारण स्व-शासन की जिनकी शक्ति, यदि नष्ट नहीं, तो सर्वथा छिन्न-भिन्न कर दी गयी हो । आज विधानसभा में बने हुए कानूनों के अनुसार ग्राम पंचायतों का संगठन हो रहा है | ये सच्ची पंचायतें नहीं हैं। गांधीजी जिसे ग्रामराज्य कहते थे, वह यह नहीं हैं। गांधीजी के सारगर्भित शब्दों में “पंचायत अपने ही बनाये हुए कानूनों के अनुसार काम कर सकती है।" समाज के जीवन को आत्मनियन्त्रित करने की यह शक्ति पैदा हो जानी चाहिए, विकेन्द्रीकरण के नाम पर ऊपर से बख्शी नहीं जानी चाहिए। इसकी प्रक्रिया नीचे से शुरू होनी चाहिए। स्व-राज्य और आत्म-व्यवस्था के कार्यक्रम जनता के सामने रखे जायें और विधायक तथा निर्दलीय दृष्टि से उनको सहायता दी जाए, ताकि वे उन्हें व्यवहार में ला सकें। अब यह स्पष्ट हो गया है कि गांधीजी राष्ट्रीय पैमाने पर इस कार्यक्रम को चलाने की दृष्टि से ही कांग्रेस को एक निर्दलीय लोक सेवक संघ में परिवर्तित करने की बात सोच रहे थे । 1 मैं राज्य की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई प्रतिष्ठा को गहरी आशंका और भय की दृष्टि से देखता रहा हूं। साम्यवादी, गणतान्त्रिक समाजवादी तथा कल्याणवादी - फासिस्टों की तो कहें ही क्या - सब-के-सब राज्यवादी हैं। वे सब पहले हाथ में सत्ता लेकर उसके बाद राज्य के अधिकारों और कार्यक्षेत्रों में वृद्धि करके अपने ढंग से सतयुग का निर्माण करना चाहते हैं । बुर्जुआ (भद्र लोगों के) राज्य का राजनीतिक सत्ता पर एकाधिकार था । समाजवादी राज्य में उसके साथ आर्थिक एकाधिकार के जुड़ने का भय रहता है। सत्ता के इतने बड़े केन्द्रीयकरण को नियन्त्रित और संयमित रखने के लिए उससे अधिक नहीं, तो उतनी शक्ति तो चाहिए ही । समाजवादी समाज में इस प्रकार की कोई शक्ति और प्रभुता के आश्वासन की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। आर्थिक और राजनीतिक अफसरशाही इतनी शक्तिशाली हो जाएगी और इतने महत्त्वपूर्ण सत्ता स्थान उसके हाथ में होंगे कि जनता की स्वतंत्रता और स्वाधिकार के साथ ही जनता की रोजी-रोटी भी सर्वथा उस अफसरशाही की दया पर निर्भर करेगी । इस खतरे से बचने का मुझे केवल एक ही उपाय मिला कि जहां तक व्यावहारिक हो सके, जनता के लिए राज्य के बिना काम चलाना और अपनी व्यवस्था प्रत्यक्ष रूप में अपने आप कर लेना संभव बनाया जाय। समाजवाद की भाषा में बोलना हो तो मैं इस प्रकार कहूंगा कि राज्य सत्ता का इस्तेमाल करके समाजवाद कायम करने के बजाय जनता के स्वैच्छिक प्रयत्नों द्वारा समाजवादी जीवन के स्वरूपों की सृष्टि और विकास किया जाए। दूसरे शब्दों में उपाय यह है कि राज्यवादी समाजवाद के स्थान पर जनता का समाजवाद कायम किया जाए। सर्वोदय जनता का समाजवाद है । प्रत्येक समाजवादी Jain Education International 19 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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