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________________ 18 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? यथोचित पूर्ति होनी चाहिए। यह सत्य है कि भारत जैसे पिछड़े और गरीब देश में सामाजिक पुनर्निर्माण का मुख्य काम ही जन-साधारण के जीवन-स्तर को ऊंचा उठाना है। किन्तु भौतिक समृद्धि को देवता-तुल्य बना देने और भौतिक पदार्थों की न बुझने वाली भूख को शान्त करने की इच्छा रखने वाली जीवन दृष्टि को प्रोत्साहित करने से न तो यहां काम चलेगा और न कहीं अन्यत्र ही। यदि लगातार वह भूख उनको सताती रही, तो न.लोगों के दिल और दिमाग में शान्ति होगी और न एक-दूसरे के बीच आपस में शान्ति रहेगी। उससे व्यक्तियों, दलों और राष्ट्रों के बीच अवश्य ही एक अनियन्त्रित स्पर्धा खड़ी हो जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति अपने पड़ोसी से आगे बढ़ने की कोशिश करेगा और प्रत्येक राष्ट्र केवल दूसरे राष्ट्रों को पकड़ने की ही नहीं, बल्कि उन सबको पीछे छोड़ जाने की कोशिश करेगा। इस प्रकार के असंतोषी समाज में हिंसा और युद्ध उसकी एक खासियत हो जाते हैं। तब जीवन के समस्त मूल्य 'और चाहिए', 'और चाहिए' की सर्वोपरि इच्छा के अधीन हो जायेंगे। धर्म, कला, दर्शन, विज्ञान, सबको अधिक चाहिए, और भी अधिक चाहिए इस एक ही लक्ष्य की पूर्ति में लग जाना पड़ेगा। समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व सब-के-सबको भौतिकवाद की बाढ़ में डूब जाने का खतरा पैदा हो जायेगा। मानव-जीवन में कोई अन्य सहारा, कोई सच्चा संतोष नहीं रहेगा; क्योंकि जितना ही अधिक किसी के पास होता है, उतनी ही अधिक उसकी भूख बढ़ती है। ___ नैतिक जीवन और मानवीय व्यक्तित्व के विकास तथा समस्त मानवीय गुणों और मूल्यों के फूलने-फलने के लिए शारीरिक भूख (आवश्यकताओं) पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है। समाजवादी मूल्यों के सम्बन्ध में तो यह बात खास तौर से सही है। सबके साझे प्रयत्न से जो उपयोगी चीजें हों, उन्हें एक दूसरे के साथ बांटकर खाने का तरीका ही समाजवादी जीवन का मार्ग है। बांट लेने का यह काम जितनी स्वेच्छा और सहमति से होता है, उतना ही समाज में तनाव और दबाव कम होगा और उतना ही अधिक समाजवाद उसमें होगा। मैं समझता हूं कि जब तक समाज के सदस्य अपनी आवश्यकताओं पर नियंत्रण रखना नहीं सीखते तब तक स्वेच्छा से चीजों को बांट लेना यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य होगा। तब समाज निश्चय ही दो टुकड़ों में बंट जायेगा। एक उन लोगों को जो दूसरों को अनुशासित करने का प्रयत्न करते होंगे और दूसरा बाकी बचे हुए सब लोगों का। समाज की इस प्रकार की व्यवस्था में एक प्रश्न हमेशा सामने रहता है-अनुशासित करने वालों पर अनुशासन कौन रखेगा, राज्य करने वालों पर राज्य कौन करेगा? साम्यवादी देशों के उदाहरण और समाजवादी सरकारों के अनुभव.से यह प्रगट है कि इस शाश्वत प्रश्न का उत्तर देना बहुत ही कठिन है। इसका एक ही हल मालूम होता है और वह यह कि ऊपर से अनुशासन करने की आवश्यकता और उसके क्षेत्र को जितना अधिक से अधिक संभव हो, संकुचित और सीमाबद्ध किया जाय तथा आत्मानुशासन के क्षेत्र का उत्तरोत्तर विस्तार किया जाए। यह हो सकेगा इस बात का इत्मिनान दिलाने पर कि समाज का प्रत्येक सदस्य आत्मानुशासन से काम करता है और समाजवादी मूल्यों के अनुरूप आचरण करता है और दूसरी चीजों के साथ-साथ अपने साथियों के बीच स्वेच्छापूर्वक बांटता और सहयोग करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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