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________________ आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य 13 दक्षेस शिखर सम्मेलन ने संकल्प किया-'सात वर्ष में गरीबी का उन्मूलन कर देंगे।' सत्ता की कुर्सी पर आसीन लोग संकल्प करते हैं, पर कोई भी संकल्प जनता के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकता। सरकारी संकल्प सामने आता है किन्तु जनता की चेतना को जागृत करने का कोई प्रयत्न नहीं होता। संकल्प अधूरा रह जाता है,सपने आकार नहीं ले पाते। इस सचाई की ओर हमारा ध्यान अधिक आकृष्ट होना चाहिए कि प्रवृत्ति के साथ हमारी चेतना जुड़ रही है या नहीं। महात्मा गांधी की सफलता का यही रहस्य है कि उन्होंने झाडू और चरखे के साथ अपनी चेतना को जोड़ा था, इसीलिए झाडू उनका ब्रह्मास्त्र और चरखा सुदर्शन चक्र बन गया। झाडू और चरखा चेतना से अलग रहकर मूल्यवान नहीं बन सकते। गांधी के सपनों का भारत इसीलिए नहीं बन सका कि उसके साथ जनता की चेतना नहीं जुड़ पाई। गांधी ने कहा___ 'मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिसमें गरीब से गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि यह उनका देश है और इसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिनमें ऊंचे और नीचे वर्गों का भेद नहीं होगा और जिसमें विविध सम्प्रदायों में पूरा मेलजोल होगा। ऐसे भारत में अस्पृश्यता या शराब और दूसरी नशीली चीजों के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। उसमें स्त्रियों को समान अधिकार होंगे। सारी दुनिया के साथ हमारा सम्बन्ध शान्ति का होगा, यानी न तो हम किसी का शोषण करेंगे और न किसी के द्वारा अपना शोषण होने देंगे। ऐसे सब हितों का, जिनका करोड़ों मूक लोगों के हितों से कोई विरोध नहीं है, पूरा सम्मान किया जाएगा। फिर वे हित देशी हों या विदेशी । यह है 'मेरे सपनों का भारत' । इससे भिन्न किसी चीज से मुझे संतोष नहीं होगा।' क्या चेतना का नव-निर्माण किए बिना गांधी के सपनों के भारत का निर्माण किया जा सकेगा? परिवर्तन के कारक तत्त्व हजारों-हजारों वर्षों से धर्मग्रन्थों का निर्माण हो रहा है। हजारों-हजारों प्रवक्ता उनके सिद्धान्तों की व्याख्या कर रहे हैं, उपदेशों पर प्रवचन कर रहे हैं। नीतिशास्त्रों और सूत्रों का उच्चारण कर रहे हैं, फिर भी मनुष्य नहीं बदला है, समाज नहीं बदला है, विश्व नहीं बदला है। क्या उन सिद्धान्तों, उपदेशों और प्रवचनकारों पर पुनर्विचार करना आवश्यक नहीं है? इस प्रकार के चिंतन का स्वर बार-बार मुखर हो रहा है। इसकी समीक्षा होनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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