________________
12
कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ?
I
है । केवल व्यवस्था को बदलना भी एकान्तवादी दृष्टिकोण है । अनेकान्तवाद का दृष्टिकोण यह है- मनोवृत्ति और व्यवस्था - दोनों का युगपत् परिवर्तन होना चाहिए। यह युगपत्वाद अनेकान्त का प्राणतत्व है। इसमें दो विकल्पों की एक साथ स्वीकृति है । इस युगपत्वाद के आधार पर नई समाज रचना का प्रयत्न किया जाए तो नई दिशा का उद्घाटन हो सकता है । श्रम, स्वावलम्बन, स्वदेशी-अर्थव्यवस्था, राज्य-व्यवस्था, कृषि, उद्योग आदि भौतिक संसाधनों में परिवर्तन लाने की कल्पना - ये सब नई समाज-व्यवस्था में प्राण संचार नहीं कर सकतीं । श्रम और स्वावलम्बन की चेतना को विकसित करके ही उसमें प्राण संचार किया जा सकता है । चेतना को विकसित करने की दिशा में प्रयत्न बहुत कम हो रहा है, इसलिए प्रयत्न का जो परिणाम आना चाहिए, वह नहीं आ रहा है । चेतनाशून्य प्रवृत्ति महावीर की भाषा में द्रव्यक्रिया होती है ।
भाव क्रिया का प्रयोग
महात्मा गांधी का प्रयोग भावक्रिया का प्रयोग था । चेतनाशून्य प्रयोग को उन्होंने कभी महत्त्व नहीं दिया। कोरा चरखा चले और चरखे के साथ जुड़ी हुई चेतना समाप्त हो जाए तो वैज्ञानिक उपकरणों के सामने चरखा अपना मूल्य स्थापित नहीं कर सकता। खादी, ग्रामोद्योग आदि सब प्रवृत्तियों के लिए यही बात चरितार्थ होगी । सत्याग्रह की पृष्ठभूमि में जो सत्यग्राही दृष्टिकोण दिया था, वह विलुप्त हो गया । केवल सत्याग्रह शब्द शेष रह गया इसीलिए वह आज किसी को आकृष्ट नहीं कर रहा है । इस विषय में विनोबाजी की यह टिप्पणी बड़ी महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने लिखा है
entr
'मैं कबूल करता हूं कि मुझ पर गीता का गहरा प्रभाव है । उस गीता को छोड़कर, महावीर से बढ़कर किसी का असर मेरे चित्त पर नहीं है । उसका कारण यह है कि महावीर ने जो आज्ञा दी है, वह बाबा को पूर्ण मान्य है । आज्ञा यह है कि सत्यग्राही बनो । आज जहां-जहां जो उठा सो सत्याग्रही होता है । बाबा को भी व्यक्तिगत सत्याग्रही के नाते गांधीजी ने पेश किया था, लेकिन बाबा जानता था - वह कौन है, सत्याग्रही नहीं, सत्यग्राही है । हर मानव के पास सत्य का अंश होता है, इसलिए मानव जन्म सार्थक होता है । तो सब धर्मों में, सब ग्रन्थों में, सब मानवों में सत्य का जो अंश है, उसको ग्रहण करना चाहिए । हमको सत्यग्राही बनना चाहिए, यह जो शिक्षा है महावीर की, बाबा पर गीता के बाद उसी का असर है। गीता के बाद कहा, लेकिन जब देखता हूं तो मुझे दोनों में फरक ही नहीं दिखता ।'
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org