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________________ शिक्षा 129 नई पीढ़ी का निर्माण करने के लिए नई दिशा की खोज और नए जीवन-दर्शन की व्याख्या करनी होगी। नई दिशा का सूत्र होगा-भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का संतुलन। नए मनुष्य के जन्म का सूत्र होगा-आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यक्तित्व का जन्म । केवल भौतिकता की दिशा में चलने का परिणाम है नैतिकता का ह्रास, मानवीय संबंधों में कटुता, संघर्षमय और संहारक शस्त्रों का निर्माण। इस स्थिति को एक नई दिशा का निर्माण करके ही बदला जा सकता है। केवल आध्यात्मिकता से जीवन के लिए उपयोगी साधन-सामग्री नहीं जुटाई जा सकती। केवल भौतिकता से जीवन अच्छा नहीं चलता। अतः सामाजिक मनुष्य के लिए भौतिक और आध्यात्मिक दोनों में संतुलन स्थापित करना अपेक्षित है। वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है। वैज्ञानिक शोधों ने अनेक-अनेक अंधविश्वासों का सन्तुलन किया है। अब धर्म और अध्यात्म को भी वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना जरूरी है। धर्म और अध्यात्म का पहला सूत्र है सम्यग दृष्टिकोण। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का हृदय है-सत्य की खोज निरन्तर चालू रहे, खोज का दरवाजा बन्द न हो। सम्यग दृष्टिकोण का मर्म भी यही है। धर्म का दूसरा सूत्र है सम्यग आचरण। यह भौतिक-विज्ञान का विषय नहीं है। केवल सत्य की खोज का दृष्टिकोण जीवन विकास के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए सम्यग् आचरण का पक्ष बहुत जरूरी है। आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व का अर्थ होगा-वह व्यक्ति जिसका दृष्टिकोण वैज्ञानिक है, सत्य की खोज के लिए समर्पित है और जिसका आचरण आध्यात्मिक है। ये दोनों पक्ष व्यक्तित्व को सर्वांगीण बनाते हैं। केवल आध्यात्मिक और केवल वैज्ञानिक-इस विभाजन ने अनेक समस्याएं उत्पन्न की हैं। केवल आध्यात्मिक है और दृष्टिकोण वैज्ञानिक नहीं है, उसमें रूढ़िवाद, अंधविश्वास पनप जाते हैं। केवल वैज्ञानिक है, आध्यात्मिक नहीं हैं, उसमें मानसिक असंतुलन, असंतोष, पदार्थाभिमुखता आदि पनप जाते हैं। नई पीढ़ी में यह विभाजन रेखा समाप्त होनी चाहिए। एक ही व्यक्ति आध्यात्मिक और वैज्ञानिक होना चाहिए। __ आर्थिक विकास ही सब कुछ है-इस अवधारणा ने व्यक्ति और समाज को अर्थलोलुप बना दिया है। उसका आध्यात्मिक व्यक्तित्व समाप्त हो चुका है। अर्थ-प्रधान व्यक्ति और समाज में संवेदना और करुणा के स्रोत सूख जाते हैं। श्री रामनंदन ने एंगेल्स के विचारों को उद्धृत करते हुए इस विषय का सम्यग् आकलन किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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