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कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी?
की उत्कृष्ट लालसा होने पर निष्ठा का निर्माण जटिल होता है। विद्यार्थी जीवन में आयु की अपरिपक्वता होती है, व्यावसायिक स्पर्धा में वह उतरता नहीं है और सुविधा के प्रति भी प्रबल मनोभाव नहीं बनता इसलिए उसमें नए संस्कार का निर्माण करना बहुत जटिल नहीं होता।
शिक्षा का कार्य है अच्छे संस्कार का निर्माण, अच्छी आदतों का निर्माण और अच्छे चरित्र का निर्माण। केवल जीविकोपयोगी शिक्षा के द्वारा वह संभव नहीं है। अनुशासनहीनता और चारित्रिक ह्रास की अनुभूति समाज को हो रही है, उसका हेतु केवल जीविकोपयोगी शिक्षा है। विद्यार्थी का मस्तिष्क अर्थार्जन तथा सुविधा के साधनों की प्रचुरता की शिक्षा से ही शिक्षित होगा, उसमें चरित्र और नैतिकता का कोष्ठ सुषुप्त ही रह जाएगा। नई पीढ़ी का निर्माण _ नई पीढ़ी का निर्माण-इस संकल्पना में पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच अवस्थाकृत भेदरेखा नहीं है। उन दोनों के बीच एक गुणात्मक भेदरेखा है। वर्तमान पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से जो विरासत में मिला है, उसमें वांछनीय और अवांछनीय-दोनों प्रकार के तत्त्व हैं। अवांछनीय तत्त्वों की तालिका यह
1. आर्थिक विकास ही सब कुछ है। 2. आर्थिक विकास के लिए बौद्धिक विकास बहुत आवश्यक है। 3. आर्थिक प्रधानता वाले युग में नैतिकता अथवा चरित्र विकास
संभव नहीं है। मनुष्य सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी है, इसलिए वह सर्वाधिक
सुख-सुविधा का उपभोग करने का अधिकारी है। 5. वह अपनी सुख-सुविधा के लिए किसी भी पशु-पक्षी की हत्या
करे, यह अनुचित नहीं है। 6. सांप्रदायिक अभिनिवेश, जातिभेद और रंगभेद के आधार पर
मनुष्य जाति का विभाजन। 7. कोई धनवान होता है, कोई गरीब, इसका हम क्या करें। 8. भौतिकवादी दृष्टिकोण की प्रधानता। 9. जीवन का मशीनीकरण।
उक्त तत्त्वों ने समाज को रुग्ण बनाया है। स्वस्थ समाज की संरचना की चर्चा बहुत प्रिय है। उसे संभव बनाने के लिए आवश्यक है नए मनुष्य का जन्म और नई पीढ़ी का निर्माण।
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