SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा 127 और संप्रदायवाद के बीज बोए गए हैं, बोए जा रहे हैं। इस स्थिति में धार्मिक शिक्षा से नैतिकता के फलित होने की आशा नहीं की जा सकती। एक विद्यार्थी को जीने की कला सिखाई जाए, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्वास्थ्य का बोध कराया जाए तो नैतिकता के प्रति सहज आकर्षण उत्पन्न हो सकता है। वर्तमान में अर्थ के प्रति अत्यधिक आकर्षण हो रहा है। सामाजिक जीवन में अर्थ की अनिवार्यता को कोई नकार नहीं सकता। 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'-इस सचाई को झुठलाने का परिणाम भी अच्छा नहीं है। अर्थ के अति आकर्षण ने नैतिकता के दृष्टिकोण को धूमिल बना दिया है। व्यापार, उद्योग, शासन और प्रशासन-इन सबमें नैतिक मूल्यों की अवहेलना हो रही है। सुविधा के साधनों की स्पर्धा, गरीबी और महंगाई अनैतिकता के पनपने के लिए उर्वरा बनी हुई है। यह वास्तविकता का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू यह है-विद्यार्थी को प्रारम्भ से ही नैतिक मूल्यों तथा उनके लाभालाभ से परिचित नहीं कराया जाता। विश्वविद्यालय के प्रांगण में यत्र-तत्र मूल्यपरक शिक्षा का स्वर सुनाई दे रहा है। यह नैतिकता की शिक्षा का नया संस्कार है। यह स्वर बौद्धिक शिक्षा की अपर्याप्तता से उपजा हुआ है। जीवन-रथ को केवल बौद्धिकता के चक्र पर नहीं चलाया जा सकता। उसको गतिमान बनाने के लिए नियंत्रण का चक्र भी आवश्यक है। मानसिक आकांक्षाओं, इन्द्रियगण की उच्छृखल मांगों और मानसिक विक्षेपों पर नियंत्रण करने की विधि सीखे बिना विद्यार्थी मानसिक अनुशासन और मानसिक शान्ति के उपयुक्त नहीं बनता, नैतिकता के वातावरण का निर्माण नहीं कर सकता। __मूल्य बोध केवल अध्ययन का विषय नहीं है। वह शिक्षा का विषय है। अध्ययन की शिक्षा के अन्दर छिपे हुए भेद को समझना जरूरी है। अध्ययन का अर्थ है-पाठ और शिक्षा का अर्थ है-अभ्यास। पाठ परीक्षा के लिए हो सकता है, अभ्यास निष्ठा के बिना नहीं हो सकता। निष्ठा जगाने का प्रयत्न बौद्धिक, भावनात्मक-दोनों स्तरों पर होना चाहिए। उसमें आंतरिक और बाहरी आयामों का स्पर्श होना चाहिए। अर्थार्जन के प्रति आकर्षण इसलिए है कि उसका फल प्रत्यक्ष है। नैतिकता, आर्थिक पवित्रता और सदाचार के प्रति आकर्षण इसलिए नहीं है कि इनका फल प्रत्यक्ष नहीं है। इनका जो फल मिलता है वह भी परोक्ष जैसा ही है, इसलिए इनके प्रति निष्ठा पैदा करना एक जटिल कार्य है। विद्यार्थी जीवन में निष्ठा पैदा करने का कार्य अपेक्षाकृत सरल है। आयु की परिपक्वता, व्यावसायिक स्पर्धा और सुविधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy