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________________ आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य आर्थिक विकास एक षडक्षरी (छह अक्षर वाला) वशीकरण मंत्र है। इसकी आराधना में जितनी शक्ति लग रही है, उतनी अन्य किसी आराधना में नहीं लग रही है। धर्म और दिव्य शक्तियों की आराधना भी आर्थिक उपलब्धि के लिए हो रही है। यह अहेतुक भी नहीं है। इन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने वाले समाज का केन्द्रीय बिन्दु है-इन्द्रिय तृप्ति । उसका साधन है अर्थ । इसलिए अर्थ के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है। इन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने का दूसरा पहलू है-मानसिक तुष्टि। उसके नाना रूप हैं-पूजा, प्रतिष्ठा, सम्मान । इनकी पूर्ति का भी सर्वाधिक शक्तिशाली साधन है अर्थ । इसलिए अर्थ की आराधना अहेतुक नहीं है। इन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने का तीसरा पहलू है-सुविधावादी दृष्टिकोण। हर मनुष्य अधिक से अधिक सुविधा चाहता है। उसका साधन है अर्थ। इसलिए अर्थ के प्रति आकर्षण कम नहीं हो सकता। इस सुविधावादी मनोवृत्ति का फायदा उठा रहा है व्यावसायिक विज्ञान और बड़ी-बड़ी कम्पनियां। वे नित नए सुविधा के साधनों का निर्माण कर मनुष्य के शारीरिक बल एवं मनोबल को यंत्र-बल से आच्छादित कर रही हैं। अधिकार की भावना इन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने का चौथा पहलू है-अधिकार की मौलिक मनोवृत्ति। एक शिष्य अध्यात्म और विज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा था। उसने मनोविज्ञान को भी पढ़ा। उसके मन में एक प्रश्न उभरा। वह उसे समाहित नहीं कर पाया। उसने गुरु से जिज्ञासा की-'गुरुदेव! मनोविज्ञान का प्रवर्तक फ्रायड कहता है-हमारी सारी प्रवृत्तियों का मूल है-सेक्स (कामवृत्ति)। क्या यह सही है?' गुरु ने कहा, 'हम अनेकान्तवादी हैं इसलिए उसे अस्वीकार न करें किन्तु सीधा स्वीकार भी न करें। यह एक सापेक्ष सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं है। पूरी सचाई के लिए कर्मशास्त्र का अध्ययन करना होगा।' गुरु ने मोहनीय कर्म का विवेचन करते हुए समझाया-'मूल वृत्ति लोभ है। शेष वृत्तियां इससे उपजी हुई हैं। इसे हम लोभ कहें, राग कहें या परिग्रह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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