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आर्थिक विकास और नैतिक मूल्य
यही मूल वृत्ति है । लोभ है तो क्रोध आता है। क्रोध की पृष्ठभूमि में छिपा रहता है लोभ । अभिमान क्या है? वह भी लोभ का उपजीवी है । लोभ है तो माया होती है ।'
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शिष्य ने जिज्ञासा की - 'गुरुदेव ! क्या मनोविज्ञान का यह मत गलत - काम मूल वृत्ति है?'
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गुरु ने कहा, 'वत्स ! काम क्या है? वह लोभ की उपजीवी वृत्ति है । लोभ और काम-दोनों जुड़े हुए हैं । नियुक्तिकार ने काम के दो प्रकार किए हैं- इच्छा-काम और मदन- काम । मदन- काम (सेक्स) मूल नहीं है, मूल है इच्छा - काम ।'
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गुरु ने कहा, 'फ्रायड ने जो कहा है, वर्तमान मनोविज्ञान में वह अवधारणा भी बदल गई है। वर्तमान मनोवैज्ञानिक यह मानने लग गए हैं-मूल वृत्ति सेक्स नहीं है। मूल वृत्ति है - अधिकार की भावना । वैज्ञानिक ने एक प्रयोग किया। ऐसा कृत्रिम तालाब बनाया, जिसमें तापमान को नीचे गिरा दिया गया । तालाब में जितने जलचर प्राणी थे, उनकी सारी काम-वृत्ति समाप्त हो गई। सेक्स का सम्बन्ध व्यक्ति के तापमान से है। तापमान के नीचे गिर जाने पर भी अधिकार की भावना उनमें बनी रही । इस विषय पर वैज्ञानिकों ने बहुत गहरा अध्ययन किया है। उनका निष्कर्ष है-अपने अधिकार को, अपने निवास स्थान को छोड़ना कोई पसन्द नहीं करता ।'
दो महत्त्वपूर्ण शब्द हैं - आगार और अनगार । अनगार वह है, जिसने अधिकार की वृत्ति को समाप्त कर दिया, घर को छोड़ दिया । अनगार का अर्थ है - मूल मनोवृत्ति पर प्रहार करने वाला | चिड़िया घोंसला बनाती है । पशु घूरी बनाते हैं। चिड़िया पेड़ पर बैठेगी और एक प्रकार की आवाज करेगी । उसका अर्थ है - इस टहनी पर मेरा अधिकार हो गया है। अब कोई इस पर बैठने का प्रयास न करे। कुछ पशु ऐसे हैं, जिनमें गन्ध की ग्रन्थि होती है । शेर के मूत्र में गंध होती है । सब पशु समझ जाते हैं कि वहां शेर रहता है, उस ओर नहीं जाना है। शेर अपना अधिकार जताता है गंध के द्वारा ।
छोटे से छोटे प्राणी में अपना घर बनाने की वृत्ति है, अपना अधिकार जाने की मनोवृत्ति है । बहुत कठिन बात है अगार को त्यागना । प्राणी की मूल मनोवृत्ति है - घर पर अधिकार करना । जिसने यह अधिकार छोड़ दिया, वह अनगार हो गया, उसने एक नई यात्रा शुरू कर दी ।
परिग्रह : तीन प्रकार
जैन तीर्थंकरों ने दो मूल दोष बतलाए - आरम्भ और परिग्रह। इनमें भी
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