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________________ 98 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ? है। इसका परिणाम है-आज आदमी स्वयं में सुन्दर नहीं रहा। वह कपड़े सुन्दर पहनना चाहता है पर स्वयं सुन्दर नहीं है। वह अपने आपमें सजा हुआ नहीं है पर अपने आपको सजाना चाहता है। अनेक व्यक्ति सेंट लगाते हैं किन्तु क्या वे यह नहीं जानते कि यह कैसे बनता है? यदि व्यक्ति सेंट बनाने की प्रक्रिया को जान ले तो शायद उसे लगाना बन्द कर दे। एक जानवर होता है बिज्जु । उसकी यौनग्रंथि से जो स्राव होता है, उसमें बहुत सुगन्ध होती है। उस बिज्जु की यौनग्रन्थि को पीट-पीटकर स्राव कराया जाता है और उसी नावित पदार्थ से बहुत सारे सेंट बनते हैं। एक छोटा-सा प्राणी है बीवर । उसका चमड़ा बहुत मुलायम होता है। रोएँदार कोट बनाने के लिए उस बीवर को मारा जाता है। क्रूरता की पृष्ठभूमि शक्तिशाली आदमी कमजोर को मारता है, यह एक सिद्धान्त-सा बन रहा है। मनुष्य को सोचने की शक्ति मिली है किन्तु वह प्राणियों के साथ जो अन्याय कर रहा है क्या वह युक्तिसंगत है? मनुष्य के शौक ने कितनी क्रूरता को जन्म दिया है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। थोड़े से आराम, बड़प्पन और सौन्दर्य के लिए कितना अन्याय किया जा रहा है। लोग कहते हैं-आतंकवाद बढ़ रहा है। आदमी को तिनके की तरह मारा जा रहा है। यदि आदमी के चरित्र को देखें तो और क्या परिणाम आ सकता है? यह एक चक्र है। यदि हजार आदमी क्रूरता करेंगे तो लाखों आदमी क्रूर बन जाएंगे। क्रूरता के पीछे क्या है? इस पर हम ध्यान केन्द्रित करें। उसकी पृष्ठभूमि में है-रुपया, आराम, सुन्दर दीखने की प्रवृत्ति और बड़प्पन की भावना। समाचार-पत्र में पढ़ा-कस्तूरी मृग समाप्त होते चले जा रहे हैं। पश्चिमी देशों में इसकी बहुत मांग बढ़ गई है। अब इसका उपयोग शस्त्रों में होने लगा है इसलिए इसका मूल्य बढ़ गया है। मृगों को मारने वाले अवैध तरीके से मारने लगे हैं। कस्तूरी मृग का अस्तित्व ही विलुप्त सा हो गया है। शिकारी के लिए यह एक व्यवसाय है। रुपये के लोभ ने, प्रसाधन और सौन्दर्य के लोभ ने जिस क्रूरता को जन्म दिया है, वह दिल को दहलाने वाली आज हाथियों को मारा जा रहा है। हाथी-दाँत बेचने पर भी सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। चर्म के लिए बाघों-चीतों को मारना शुरू कर दिया गया है। जिस प्राणी से भी पैसे मिलते हैं, उसे मारा जा रहा है किन्तु यह बात नई नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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