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________________ पर्यावरण 99 हम आचारांग सूत्र को पढ़ें। किन-किन कारणों से जीव मारे जाते हैं, उनका विशद वर्णन आचारांग सूत्र में है कुछ व्यक्ति शरीर के लिए प्राणियों का वध करते हैं। कुछ लोग चर्म, मांस, रक्त, हृदय, पित्त, चर्बी, पंख, पूँछ, सींग, विषाण, हस्तिदंत, दाँत, दाढ़, नख, स्नायु, अस्थि और अस्थिमज्जा के लिए प्राणियों का वध करते हैं। कुछ व्यक्ति प्रयोजन वश प्राणियों का वध करते हैं। कुछ व्यक्ति बिना प्रयोजन प्राणियों का वध करते हैं। कुछ व्यक्ति (इन्होंने मेरे स्वजन वर्ग की) हिंसा की थी, यह स्मृति कर प्राणियों का वध करते हैं। कुछ व्यक्ति (ये मेरे स्वजन वर्ग की) हिंसा कर रहे हैं, यह सोचकर प्राणियों का वध करते हैं। कुछ व्यक्ति (ये मेरे स्वजन वर्ग की) हिंसा करेंगे, इस संभावना से प्राणियों का वध कर रहे हैं। क्या करुणा जागेगी? प्रश्न है-क्या मनुष्य की वृत्तियां बदलेंगी? क्रूरता कम होगी? क्या करुणा जागेगी? ऐसा लगता है, तब तक करुणा को जगाने का प्रयत्न सफल नहीं हो सकता जब तक लोभ को कम करने का प्रयत्न सफल न हो जाए। प्रेक्षाध्यान शिविर के दौरान एक प्रश्न प्रस्तुत हुआ-क्रोध को कम करने के लिए ज्योति-केन्द्र पर ध्यान कराया जाता है। नशा छुड़ाने के लिए अप्रमाद केन्द्र पर ध्यान कराया जाता है। भयवृत्ति को कम करने के लिए आनन्द केन्द्र पर ध्यान कराया जाता है। लोभ की वृत्ति को मिटाने के लिए किस केन्द्र पर ध्यान कराना चाहिए? मैंने कहा-इस विषय में मैं स्वयं उलझन में हूं। अन्य वृत्तियों को बदलने के सूत्र तो हाथ लग गये हैं पर लोभ की वृत्ति को बदलने का सूत्र अभी पकड़ में नहीं आया है। हमारा त्रस-जगत कितना सुन्दर है। पशु, पक्षी, निर्विघ्न विचरते तो यह त्रस-जगत, यह संसार कितना सुन्दर होता, कृत्रिम अभयारण्य बनाने की कोई जरूरत नहीं होती। पर मनुष्य ने अपने लोभ, सौन्दर्य और लालसा की भावना के कारण भयंकर क्रूरता को जन्म दिया और संसार की सारी सुन्दरता को तहस-नहस कर दिया। आज व्यक्ति सोचता है-पर्यावरण का प्रदूषण न हो। यह उसकी कृत्रिम चिन्ता है। जब तक महावीर की वाणी का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा, अहिंसा के सिद्धान्त पर ध्यान केन्द्रित नहीं होगा तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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