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५६ पदार्थ पर रहे हुए ईख को काटे, सचित्त पर्वरहित ईख का टुकड़ा, ईख के रेशे आदि को खाए और उसकी पतली डाली को भी खाए वा काटे, अथवा शस्त्र से काटे । ____ जो भिक्षु आरण्यकमनुष्यों से---जंगल में रहने वालों से, आरण्यक यात्रा में प्रस्थित मनुष्यों से-अशन, पान, खादिम, स्वादिम ग्रहण करे।
जो भिक्षु धनिक को अधनिक कहे---संविग्न चारित्रवान् को असंविग्न साधु कहे और असंविग्न को संविग्न कहे ।
जो भिक्षु क्लेश करके दूर होने वालों से अशन, पान, खादिम स्वादिम ले, अथवा उनको दे। व्युद्ग्रह-व्युत्क्रान्तों को स्थान दे, अथवा उनसे वस्त्र ले अथवा वस्त्र दे। उनकी वसति में प्रवेश कर उनको वाचना दे, अथवा स्वयं पढे सुने । जो भिक्षु अच्छा क्षेत्र विहार के लिए होते हुए भी अनेक दिनों में पूरा हो सके ऐसे मार्ग को अपनाये अर्थात् लम्बी मुसाफिरी करने का विचार करे ।
जो भिक्षु निर्वाह योग्य अच्छे देशों के होते हुए भी म्लेच्छ, दस्यु, अनार्य क्षेत्रों में विहार करने की अभिलाषा करे और विहार करे।
जो भिक्षु अशन, पान, खादिम, स्वादिम बिना अन्तर पृथ्वी पर रखे, उक्त चीजों को खुल्ले आकाश में रखे ।।
जो भिक्षु अन्य तीथिकों और गृहस्थों के साथ भोजन करे, उनसे आवेष्टित होकर भोजन करे। जो भिक्षु आचार्य, उपाध्याय के शय्या संस्तारक को पग से ठोकर लगाता हुआ और हाथ से अनुज्ञा न लेता हुआ चला जाय ।
जो भिक्षु प्रमाणातिरिक्त और गणनातिरिक्त उपधि रखे।
जो भिक्षु अनन्तरपृथ्वी पर, जीवप्रतिष्ठित स्थान में, अण्डे प्राण, ओस, पानी, कीडीनगरे, जलयुक्त, मिट्टी, मकड़ी के जाले वाले दुर्बद्ध दुनिक्षिप्त अनिष्प्रकम्प चलाचल स्थान में मलमूत्र का परित्याग करे।
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