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से उद्वर्तन कराये, शीत या उष्ण जल से धुलाये, पोंछाये, रंगाये । इसी प्रकार शरीर का प्रभार्जन कराये, तैल, घृत, मक्खनादि से मालिश कराये, लोध, कल्क से उद्वर्तन कराये, ठण्डे-उष्ण जल से धुलवाये, पोंछाये वा रंगवाये, शरीरगत व्रण का प्रमार्जन कराये, संबाधन और तेल, घृत, नवनीत, वसा से मालिश कराये, लोध, कल्क से उद्वर्तन करे, शीतोष्ण जल से शरीर गत व्रण को धोए, साफ करे, पोंछे और रंगे । शरीर गत पिटक, फोड़ा, भगन्दर आदि को तीक्ष्ण शस्त्र से छेदे, इसमें से पीप, रक्त निकाले, शीतोदक, उष्णोदक से धोए, आलेपन करे, तेल, घृत, वमा, मक्वन से मालिश करे, बाद में किसी धूप से धूपित करे, अपान-कृमि, कुक्षि-कृमि अंगुली से निकाले, दीर्घ नखों को काटे, व्यवस्थित करे, नैत्र रोमों को काटे, व्यवस्थित करे, दांतों को घिसे धोए, पोंछे, रंगे, ओष्ठों को प्रमार्जित करे, ओष्ठों की नवनीतादि से मालिश करे, ओष्ठों का लोध, कल्क से उद्वर्तन करे, शीत, उष्ण जल से धोए, पोंछे और रंगे, लंबे उत्तरोष्ठ को काटे, दीर्घ नेत्र पलकों को काटे, अपनी आंखों का प्रमार्जन करे, आँखों की नवनीत, तैल, घृतादि से मालिश करे। लोध अथवा कल्क से उद्वर्तन करे, शीत, उष्ण जल से धोए, पोंछे और रंगे, अपने भोओं के लंबे बाल काटे, संवारे, पार्श्वरोमों को काटे, संवारे, नेत्रमल, कर्णमल, दन्तमल को निकाले शरीर से स्वेद, सूखा, गीला मैल निकाले, ग्रामानुग्राम विचरता हुआ अपने शिर पर शीर्ष द्वारिका करे। वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोञ्छन, अथवा अन्य किसी भी उपकरण को आवश्यकता से अधिक रखे, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोञ्छन अथवा अन्य कोई भी उपकरणजात शोभा के लिए ढोए, इस प्रकार की प्रतिसेवना करने वाला भिक्षु उद्घातित चातुर्मासिक परिहारस्थान को प्राप्त होता है।
(१६) षोडशोद्देशक :-जो भिक्षु गृहस्थनिवासवाले स्थान में प्रवेश करे, पानी भरे हुए मकान में प्रवेश करे, अग्नि वाले । मकान में प्रवेश करे।
जो भिक्षु सचित्त ईख को खाए, सचित्त ईख को काटे, सचित्त
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