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महोत्सवों में स्त्री, पुरुष, वृद्ध, बच्चों को अलंकृत, अनलंकृत, सजे, उछलते, कूदते, गाते, बजाते, हंसते, इठलाते, प्रसन्नता से झूमते हुए को देखकर तन्मय हो जाय, इहलौकिक रूपों में, अगर पारलौकिक रूपों में, श्रुत रूपों में, अश्रुत रूपों में, दृष्ट रूपों में, अदृष्ट रूपों में, विज्ञात रूपों में, अविज्ञात रूपों में लयलीन हो जाय अथवा आसक्त हो जाय ।
जो भिक्षु प्रथम पौरुषी में अशन, पान, खादिम, स्वादिमादि ग्रहण कर पश्चिम पौरुषी तक रखे, आधे योजन की मर्यादा के ऊपर अशन पानादि को ले जाय, दिन को गोबर लेकर दिन में व्रण पर विलेपन करे, दिन में ग्रहण कर रात्रि में विलेपन करे, रात्रि में ग्रहण कर दिन में विलेपन करे, रात्रि में ग्रहण कर रात्रि में ही विलेपन करे।
जो भिक्षु दिन में आलेपन जात को व्रण पर लगावे और दिन में लेकर रात्रि में व्रण पर लगावे, अन्यतीथिक से अथवा गृहस्थ से उपधि वहन करावे, उसको अपनी निश्रा में अशन, पान, खादिमादि दिलावे। ___ जो भिक्षु एक महीने में दो अगर तीन बार इन पांच महानदियों को-जो बड़ी विस्तृत हैं, प्रसिद्ध हैं, जिनकी महानदियों में गणना और वर्णना है, जिनके नाम-गंगा, यमुना, सरयू, एरावती और मही हैं, उतरे, उपर्युक्त प्रतिसेवना करने वाला भिक्षु उद्घातित चातुर्मासिक परिहार स्थान को प्राप्त होता है ।
(१३) त्रयोदशोद्द शक-जो भिक्षु अन्तर रहित पृथ्वी पर, स्निग्ध पृथ्वी पर, मिट्टी रूपी पृथ्वी पर, रजस्वला पृथ्वी पर, सचित्त पृथ्वी पर, सचित्त शिला पर, सचित्त मिट्टी के ढेले पर, भीतर घुण वाले काष्ठ पर, सजीव पदार्थ पर जिसमें अण्डे हैं, बीज हैं, त्रस हैं, ओस है, सूक्ष्म विवर हैं, मकडी के जाले हैं ऐसे स्थान पर शय्या करे, निवास करे ।
स्तम्भ पट्टी पर, घर द्वार के उदुम्बर पर, ओखली पर, स्नान पीठ पर, अस्थि पर, निराधार पर, प्रकम्पित पर कायोत्सर्ग, शय्या, निषद्यादि चेताये, चेताते हुए का अनुमोदन करे ।
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