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गोबर पुञ्ज, काष्ठ पुञ्ज जो ओरों के वस्त्र से ढंके हुए हैं उन पीठासनों पर बैठे, निर्ग्रन्थी की संघाटी को अन्य गृहस्थ से अथवा अन्य तीथिक से सिलाये, पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय अथवा वनस्पति काय का अल्पमात्रा में भी अथवा मटर प्रमाण में भी समारम्भ करे, सचित्त वृक्ष पर चढे, गृहस्थ के पात्र में भोजन करे, गृहस्थ का वस्त्र पहिने, गृहस्थ की निषद्या वहन करे, गृहस्थ की चिकित्सा करे, पहले जिसमें शीतल जल का परिभोग हुआ है, ऐसे हाथ से, पात्र से, चम्मच से भोजन जात से अशन, पान, खादिम स्वादिम ग्रहण करे।
जो भिक्षु काष्ठ कर्म, चित्रकर्म, पुस्तककर्म, दन्तकर्म, मणिकर्म, शैलकर्म, गूंथना, भरना, उपर्युपरि जोडना, कागज पर बैल-बूटे बनाना आदि स्वयं करे अथवा अन्य कृत को आनन्द पूर्वक निहारा करे, तन्मयता जाहिर करे । ___जो भिक्षु वप्र, खाई, पल्वल, निर्भर, वापिका,सरपंक्ति, सरोवर, पर्वत, नहर, पुष्करिणी आदि को तन्मयता से देखे । वन के झुन्ड, पर्वत की रम्यता, गहन वन की शोभा आदि को यदि प्रसन्नता अथवा बहार के लिए देखे । ग्राम, नगर, खेडा, कर्पट, मडंब, पाटन द्रोणमुख खनिज की खाने, मण्डी अथवा रम्य हर्म्यको प्रसन्नता से देखे। ____जो भिक्षु ग्रामोत्सव, सन्निवेशोत्सव, खेडोत्सव तथा ग्रामवध नगरवध और ग्राममार्ग, नगरमार्ग आदि को देखे अथवा प्रशंसा करे, वा लीन हो जाय।
जो भिक्षु अश्वकरण, उष्ट्रकरण, हस्तिकरण, वृषभकरण, भैंसाकरण, सूकरकरण, अश्व-युद्ध, हस्ति-युद्ध, उष्ट्र-युद्ध, बैल-युद्ध, भैंसायुद्ध, अश्वयुद्धस्थान, हस्तिस्थान, अश्वस्थान, उष्ट्रस्थान, अभिषेक स्थान, आख्यायिकास्थान, मानोन्मानिकास्थान और जोरों के साथ बजते हुए तूर्य, गीत, तंत्री, तलताल, तुडियादि स्थान, उत्पातों के, उपद्रवों के, महायुद्धों के, वैरों के, महासंग्रामों के, कलहों के और कोलाहलों के स्थानादि, इसी प्रकार तरह तरह के
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