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________________ ४६ चमर जो भिक्षु सार्थवाहक, संवाहक, शरीरमर्दक, शरीरविलेपनकार, स्नान कराने वाला, आभूषण धारण कराने वाला, छत्रधारी, धारी, दीपक धारक, आभूषणमंजूषा धारी तलवारधारी, धनुष धारी, शक्ति धारी, माला धारी आदि राज सेवकों के यहां से अशन पानादि ग्रहण करे 1 जो भिक्षु, राजा के अन्तःपुर में काम करने वाले कंचुकी, द्वारपाल, वर्षधर आदि से अशन, पानादि ग्रहण करे । जो भिक्षु राजा के यहां से गये हुए अशन, पानादि को राजस्त्रियों से जैसे – कुब्जा, चिलाती, वामनी, वडभी, बब्बरी, पारसी यवनी, पह्नवी, ईसनी थारुकी, लासी, सिंहली, आलवी, पुलिन्दी, शबरी आदि से ग्रहण करे, उस भिक्षु को उपर्युक्त प्रतिसेवना करने से अनुद्घातित चातुर्मासिक परिहार स्थान प्राप्त होता है । · (१०) दशमोद्देशक - जो भिक्षु पूज्य को कठोर परुष अथवा दोनों भाषा बोले अथवा दो में से एक से उनका अपमान करे, अनन्त काय संयुक्त आहार करे, आधाकर्मिक आहार करे, वर्त्तमान अथवा अनागत कालीन निमित्त कहे, शिष्य को बहकावे, अथवा उसका अपहरण करे, दिशा सम्बन्धी विपरिणाम करे, अथवा दिशा का अपहरण करे, बाहर ठहराये हुये महमान को तीन रात तक आलोचना बिना शामिल रक्खे, क्लेश कारक को क्लेश का त्याग किये बिना और प्रायश्चित्त किये बिना तीन रात के उपरान्त आलोचना कराकर अथवा न कराकर शामिल भोजन करे । उद्घातित को अनुद्घातित कहे और अनुद्घातित को उद्घातित कहे, उद्घातित के स्थान अनुद्घातित दे और अनुद्घातित के स्थान उद्घातित । जो भिक्षु उद्घातित हेतु, उद्घातित संकल्प, अनुघोषित संकल्प वा हेतु को सुनकर भी सह भोजन करे । जो अनुद्गत में उद्गत और अनस्त में अस्तमित का संकल्प करे और संशय समापन्न अवस्था में अशन, खान, पान, स्वादिम ग्रहण करे, भोजन करे, जब वह जाने कि सूर्य उगा नहीं, अथवा सूर्य अस्त हो गया है उस समय For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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