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भिक्षु लकड़ी के दण्डों, बांस के दण्ड को, बेंत के दण्ड को चित्रित करे, रखे, अथवा चित्रित कर रखे अथवा उपभोग करे।।
जो भिक्षु नवीन निवेश अगर गांव में जाकर प्रशन पानादि ग्रहण करे, जो भिक्षु नवीन घर में, लोहे की खान में, ताम्बे की खान में, जस्ते की खान में, सीसे की खान में, सोने की खान में, रतनों की खान में, हीरों की खान में जाकर अशन पानादि ग्रहण करे। ___ जो भिक्षु मुख, दांत, ओष्ठ, नासिका, कोख, हाथ, नख, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरित की वीणा करे।
जो भिक्षु मुख वीणा, दंत वीणा, ओष्ठ वीणा, नासिका वीणा, कोख वीणा, हाथ वीणा, नख वीणा, पत्र वीणा, पुष्प वीणा, फूल वीणा, बीज वीणा, हरियाली वीणा को बजाये ।
जो भिक्षु औद्देशिक शय्या में, प्राभृतक शय्या में अथवा सपरिकम शय्या में प्रवेश करे। __ जो भिक्षु संभोगनिमित्तक क्रिया नहीं माने, जो भिक्षु तुम्ब पात्र, लकड़ी पात्र, मिट्टी का पात्र जो मजबूत है और रखने योग्य है उसको फोड फोडकर फेंक दे ।
जो भिक्षु वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंच्छनक, मजबूत धारण करने योग्य होते हुए भी फाड फाडकर फेंक दे, जो भिक्षु दण्ड, लाठी, अवलेखनिका, बांस की सूई कार्यकर होतेहुए भी तोड तोडकर फेंक दे, जो भिक्षु रजोहरण को बार बार दबाये अथवा ऊपर बैठे। जो भिक्षु रजोहरण को सिर के नीचे स्थापन करे, जो भिक्षु रजोहरण को सोते समय पेरों के मूल में रखे अथवा वामदिशा में रखे या उसे सुलादे। ___ इस प्रकार की प्रतिसेवना करने वाले को मासिक परिहार स्थान की प्राप्ति होती है।
(६) षष्ठोद्देशक:-जो भिक्षु मैथुन की भावना से स्त्री जाति को विनति करे, हस्त कर्म करे, इत्यादि १ से ७७ तक के सब सूत्रों
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