________________
दिलाकर ऐसा करने वालों को प्रायश्चित्त विधान का निर्देश किया है। ____ जो चतुर्थ भागावशेष अन्तिम पौरुषी में मलमूत्र त्यागने की भूमि की प्रतिलेखना न करे, जो भिक्षु मल मूत्र त्यागने की तीन भूमियों की प्रतिलेखना न करें, जो भिक्षु संकीर्ण भूमि भाग में मल मूत्र का त्याग करे, जो भिक्षु अविधि से मलमूत्र का त्याग करे, जो भिक्षु मलमूत्र त्यागकर शरीर शुद्धि न करे अथवा अवैध रूप से शरीर शुद्धि करे, जो भिक्षु मलमूत्र का त्याग कर आचमन न करे या वहीं आचमन करे अथवा बहुत दूर जाकर आचमन करे, जो भिक्षु मलमूत्र का त्याग कर विहित प्रमाण से आचमन न करे, जो भिक्ष अपारिहारिक को पारिहारिक कहे-इत्यादि प्रति सेवना करने वाला भिक्षु उद्घातित मासिक परिहार स्थान को प्राप्त होता है ।
(५) पंचमोद्देशक:-जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल में बैठकर कायोत्सर्ग करे, शय्या अथवा निषद्या प्रारम्भ करे, आलोचना करे, अशनादि आहार करे, मलमूत्र का त्याग करे, स्वाध्याय करे, उद्दश, समुद्देश, अनुज्ञा करे, वाचना दे या वाचना ले, पठित सूत्र का परावर्तन करे।
जो भिक्षु अपनी संघाटी अन्यतीथिक अथवा गृहस्थ से सिलाये, अपनी संघाटी के लम्बे सूत्र करे, निम्ब पत्र, पटोल पत्र, बिल्व पत्र को ठन्डे जल अगर गर्म जल में भिगोभिगोकर खाए, जो भिक्षु प्रातिहारिक पादपोंछन मांगकर उसी रात्रि को वापिस देने की बोली से लाये और दूसरे दिन वापिस दे। जो भिक्षु प्रातिहारिक पादपोंछन दूसरे दिन देने की बोली करके लाये और उसी रोज लौटाये, जो भिक्षु लाठी, दण्ड, सूई आदि को लाकर दूसरे दिन का कहे, पर रात्रि को लौटाये, अथवा रात्रि का कहकर सुबह लौटाये ।
जो भिक्षु शण के कपास से, ऊन के कपास से, पौण्ड्र के कपास से अथवा अमिल के कपास से दीर्घ सूत्र बनावे ।।
जो भिक्षु सचित्त दारुदण्डक, वेणुदण्डक करे अथवा रखे, जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org