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जो भिक्षु अखण्डित औषधियों का आहार करे, जो भिक्षु आचार्य द्वारा न दिया हुआ आहार करे, जो भिक्षु प्राचार्यों उपाध्यायों द्वारा अदत्तविकृतियों का भोजन करे ।
जो भिक्षु स्थापना कुलों की पृच्छा गवेषणा और जानकारी के बिना ही भिक्षा के लिए चला जाय ।
जो भिक्षु निग्रन्थिनियों के उपाश्रय में अविधि से प्रवेश करे, निर्ग्रन्थियों के आगमन मार्ग में दण्ड, लाठी, रजोहरण, मुँहपत्ती अथवा अन्य कोई भी उपकरण रखे ।
जो भिक्षु अनुत्पन्न क्लेश को नया उत्पन्न करे, पुराने क्लेशों को फिर ताजा करे, मुह फाड़कर हँसे ।
जो भिक्षु पार्श्वस्थ अवसन्न, कुशील, नित्य, संसक्त को संघाटक दे, अगर उनका संघाटक स्वीकार करे ।
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जो भिक्षु जलार्द्र हाथ से कुड़ची से, पात्र से अशनादि ग्रहण करे, रज मिट्टी, उषस ( लोनिया धूली ) हरिताल, मनःशिला, रंजनी (रजमी ) गेरु, खड़ी, हिंगुल, अंजन, लोध, थूली, आटा, कन्दमूल आदि से भरे हुए हाथ से, भाजन से अशन पानादि ग्रहण करे ।
जो भिक्षु ग्रामारक्षिक, सीमारक्षिक, राजारक्षिक को आत्मीय करे ( बनावे ) पूजनीय बनावे, जो भिक्षु एक दूसरे के पगों का पोंछना आदि से लेकर संवाहन परिमर्दन तैलादि से मालिश लोध आदि से उद्वर्तन, जल से धोना, रंगना इसी प्रकार शरीर का पोंछना, दबाना, मलना, तैलादि से मालिश करना, शरीर का लोध आदि के कल्क से उद्वर्तन करना, एक दूसरे का शरीर शीत वा गर्म जल से धोना, शरीर का रंगना, शोभा के लिए रंग चढ़ाना, शरीर के व्रणादि को स्निग्ध पदार्थों से मालिश करना तथा लोध आदि से उद्वर्तन करना, शीतोष्ण पानी से धोना, शारीरिक व्रण को धोना तथा पोंछना, शरीर के फोड़े, मस्से, भगन्दर आदि को तीक्ष्ण शस्त्र से काटना और उनमें से पीप, खून आदि निकालना इत्यादि से लेकर १०१ सूत्र तक उपर्युक्त सभी सूत्रों की यादी
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