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________________ ४२ शरीर जलाने के स्थान में, भूसा जलाने के स्थान में, उप जलाने के स्थान में मलमूत्र का त्याग करे । जो भिक्षु नयी गोलेखनीनिकाओं में, नयी मिट्टी की खानों में, चाहे वे उपभोग में ली जाती हों चाहे न भी ली जाती हों, वहां मलमूत्र का त्याग करे, जो भिक्षु कीचड के स्थान में, पंक के स्थान में और पनक के स्थान में मलमूत्र का त्याग करे । जो भिक्षु उदुम्बर, बड अथवा पिप्पल के निकट मलमूत्र का त्याग करे, जो भिक्षु शाक, भाजी, मूलक, धनियां, जीरा, दमनक, मरू आदि की क्यारियों के निकट मलमूत्र का त्याग करें, जो भिक्षु धान के खेत में, कुसुम्ब के खेत में, कपास के खेत में अथवा ईख के खेत में मलमूत्र का त्याग करे, जो भिक्षु अशोक के वन में, सप्तपर्णी के वन में, चम्पों के वन में, आमों के वन में, इस प्रकार के अन्य किन्हीं भी वृक्षों के वनों में जो पत्रों, पुष्पों, फलों और बीजों से उपकारक हों मलमूत्र का त्याग करे । जो भिक्षु दिन में, रात्री में, अथवा विकाल समय में पीडित होकर अपने अगर दूसरे के पात्र को लेकर मलमूत्र का त्याग करे और सूर्य उगने से पहले उसको फेंक दे इत्यादि सब प्रवृत्तियों का करने वाला भिक्षु उद्घातित मासिक परिहार स्थान को प्राप्त होता है । (४) चतुर्थोद्द ेशक - जो भिक्षु राजा को आत्मीय बनाकर पूर्व संस्तव करे, पश्चात् संस्तव करे, जो राज रक्षक को आत्मीय बनाए, जो नैगमिक को अपना बनाए, जो भिक्षु देश रक्षक को आत्मीय बनाए, जो भिक्षु सर्वाऽऽरक्षक को अपना बनाए अथवा बनाने वाले का अनुमोदन करे | जो भिक्षु राजा, राजरक्षिक, निगमारक्षिक और देशरक्षिक, सर्वारक्षिक को प्रशंसा द्वारा पूजनीय बनाए । जो भिक्षु राजा, राजरक्षिक, निगमारक्षिक देशरक्षिक और सर्वाक्षिक की प्रार्थना करे । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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