________________
निशीथ सूत्र का निर्माण प्रदेश
निशीथ सूत्र का निर्माण मालवे अथवा मध्यभारत के किसी भी प्रदेश में हुआ है यह बात निशीथ के २० वें उद्देशक के ग्यारहवें तथा बारहवें सूत्र में किये गये चार महामहप्रतिपदाओं के निरूपण से प्रमाणित होता है, वे सूत्र निम्नलिखित हैं
'जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेइ करेंतं वा साइजइ, तंजहा इंदमहे १ खंदमहे २ जक्खमहे ३ भूयमहे ४ ।" ___"जे भिक्खू चउसु महपाडिबएसु सज्झायं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ तंजहा सुगिम्हायापाडिवए १, अासाढीपाडिवए २, भद्दवय पाडिवए ३, कत्तियपाडिवए ४।"
अर्थात्-"जो भिक्षु चार महाउत्सवों में स्वाध्याय करता है वा करने वाले का अनुमोदन करता है, जैसे इन्द्रमहोत्सव में, स्कंदमहोत्सव में, यक्षमहोत्सव में और भूतमहोत्सव में।" _ 'जो भिक्षु चार महप्रतिपदाओं में स्वाध्याय करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है जैसे-ग्रीष्म की प्रतिपदा में (चैत्री पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा में) आषाढी पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा में, भाद्रपदी पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा में और कार्तिकी पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा में ।' __ उपर्युक्त चार उत्सवों की पूर्णिमाओं के बाद की चारों प्रतिपदाएँ सूत्र में बताई हैं, इन्द्र महोत्सव-आसाढी पूर्णिमा को और देश विशेष में श्रावणी पूर्णिमा को अथवा भाद्रपदी पूर्णिमा को समाप्त होता था, स्कन्दमह आश्विनी पूर्णिमा को समाप्त होता था, यक्षमह कार्तिकी पूर्णिमा को होता था और भूतमह चैत्री पूर्णिमा को समाप्त होता था, इन चारों महामहों की समाप्ति पूर्णिमाओं के अन्त में आने वाली कृष्ण प्रतिपदाओं में होती थीं, इन प्रतिपदाओं के नाम स्थानांग सूत्र के चौथे स्थान के दूसरे उद्देशक में इस प्रकार लिखे हैं—“आषाढी प्रतिपदा, इन्द्रमह प्रतिपदा, कार्तिकी प्रतिपदा सुग्रीष्मक प्रतिपदा” इससे ध्वनित होता है कि महामहोंकी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org