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________________ अट्ठाईस याचार प्रकल्प - आवश्यक सूत्रान्तर्गत श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र में "अट्ठावीसाए आयाम्पकप्पेहि" इस सूत्र में २८ आचार प्रकल्पों की सूचना की हैं, इस सूत्र के टीकाकार पूर्वाचार्यों ने २८ प्रकल्प निम्न प्रकार से बताये हैं - आचारांग सूत्र के दोनों श्रुतस्कंधों के चूलिका सहित २५ अध्ययन और उद्घातित, अनुद्वातित कृत्स्न ये तीन प्रकार के प्रायश्चित्त मिलकर २८ आचारप्रकल्प होते हैं ऐसा श्रमण प्रतिक्रमण सूत्र के टीकाकार कहते हैं, परन्तु आचारांग की चूलिका निशीथाध्ययन को छोड़कर शेष २४ आचारांग अध्ययनों को "आचार प्रकल्पाध्ययन" मानना तर्क संगत नहीं होता है, क्योंकि शास्त्र में "आचार प्रकल्प" यह नाम निशीथाध्ययन के लिये ही प्रयुक्त होता है । न कि सारे आचारांग सूत्र के लिए, इस परिस्थिति में आचारांग के सर्व अध्ययनों को शामिल करके "आचार प्रकल्प" मानना तर्क संगत नहीं, व्यवहाराध्ययन में आचार - प्रकल्प पढ़ने के लिए तीन वर्ष का चारित्र पर्याय आवश्यक माना है, तब आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन और आचारांग ये सब सूत्र तीन वर्ष के पर्याय के पहले ही पढ़ाये जाते थे, इससे भी निश्चित होता है कि "आचार-प्रकल्प" यह नाम आचारांग की पंचम चूलिका का -- निशीथाध्ययन का ही है, सारे आचारांग का नहीं । ‘स्थानांग सूत्र' में आचार प्रकल्प पांच प्रकार का बताया है जैसे “पंचविहे यारपकप्पे पण्णत्ते, तंजहा- मासिए उग्घाइए, मासिए अणुधाइए, चउमासिए उग्धाइए, चउमासिए अगुवाइए, रोवणा ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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