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और तीसरे इन चार अक्षरों में क्रमशः तृतीय (इ), प्रथम ( अ ), दूसरा ( आ ) और पहला स्वर ( अ ) मिलाकर जिसका ( जिणदास ) नाम दिया है और जिसको गणित्व ( गणिपद) और महत्तरपद शुद्धाचारवान् गुरु ने दिया है, उसने निशीथ सूत्र की यह विशेष नामक चूर्णि बनाई ।'
ऊपर के नामकरणों से और भिल्लमाल, वर्मलात, आदि नामों के उल्लेखों से जिनदास गणि का मूल निवास भिल्लमाल ( भीनमाल ) अथवा इसके आसपास के प्रदेश में होना प्रमाणित है ।
अब रहा निशीथ चूर्णि के निर्माण का स्थल -
प्रस्तुत चूर्णि के उन्नीसवें उद्देशक में चार महामहों का निरूपण करते हुए चूर्णिकार लिखते हैं -
"के पुण ते महामहा ? उच्यंते, आसाढी गाहा, आसाढीआसाढ पोणिमाए । इह लाडेसु सावयवोणिमाए भवति इंदमहो । सोपुणिमाए, कतियपुरिणमाए चैव सुगिम्हतो चेचपुणिमा एते अंतदिवसा गहिया यादितो पुरण जत्थ विसए तो दिवसातो महामहो पवत्तति ।"
अर्थात् - 'महामह कौन कहे जाते हैं ? आसाढी इस गाथा में महामहों का वर्णन इस प्रकार है- आसाढी पूर्णिमा को इन्द्रमहामह पूरा होता हैं, परन्तु यहां लाट देश में श्रावणी पूर्णिमा को महामह मनाया जाता है, आश्विन पूर्णिमा, कार्तिकपूर्णिमा और चैत्री पूर्णिमा ये महामहों के अन्तिम दिन हैं ।'
ऊपर के निरूपणों में चूर्णिकार ने जो लिखा है कि 'यहां लाट देश में श्रावणी पूर्णिमा को महामह मनाया जाता हैं,' इससे निश्चित है कि आचार्य जिनदास गणि ने निशीथ चूर्णि का निर्माण “लाटदेश" में किया है ।
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