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चूर्णिकार जिनदास किस देश के थे और चूर्णि का निर्माण
किस देश में किया ?क्षेत्र संस्तव में कुरुक्षेत्र के नाम निर्देश मात्र से कोई-कोई इन्हें कुरुक्षेत्र निवासी होने का अनुमान करते हैं, यह केवल हास्यजनक हैं, नय-निक्षेपों, अनुयोगों के निरूपण में शास्त्रकार अनेक स्थानों के नाम निर्देश करते हैं, इससे निर्देशक उस प्रदेश के थे, ऐसा मानना केवल निराधार होता है।
प्राचार्य जिनदास गणि महत्तर ने चूणि में अपने भाइयों के नामों के निर्देश किये हैं वे सभी मारवाडियों के नाम हैं, मध्यकालीन और उसके पहले के इस मरुप्रदेश के लोगों के नाम ऐसे ही होते थे। जिनदास का नाम सूचक श्लोक निम्बोद्धृत है
"देहडो सीहडो सीहो, थोरो जेठा सहोयरा ।
कणिट्ठा देउलो गएणो, सत्तमो य तिइजगो।। - एतेसि मज्झिमो जो उ मं देवी तेण चिंतिता ॥"
अर्थात्-देहड, सीहड, सिंह और थोर इनमें से प्रथम के तीन जिसके बड़े भाई हैं और देउल, नन्न और सातवां तीजक ये जिसके कनिष्ठ भाई हैं, इनके मझोले भाई थोर ने मंदेवी का ध्यान करके निशीथ चूणि का १६ वां उद्देशक पूरा किया।'
उक्त सातों ही नाम पूर्वकाल में इस मरुभूमि में दिए जाते थे, इनमें का मध्यनाम "थोर" अपने ग्रन्थकार जिनदास गणि महत्तर का गृहस्थाश्रम का नाम है।
१३ वें उद्देशक के अन्त में चूर्णिकार ने निम्न गाथा में अपने पिता का नाम भी सूचित किया हैं, वह गाथा यह है
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