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और उत्कृष्ट तीन प्रकार का होता है, १८ पाटलीपुत्रीय रुपये तक का वस्त्र जधन्य, लाख की कीमत का वस्त्र उत्कृष्ट और दो के बीच का जो भी मूल्य हो, वह वस्त्र का मध्यम मूल्य कहलाता है, भारत के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में चलते हुए रुपयों में क्या-क्या वट्टा है, वह भाष्यकार बताते हुए कहते हैं
- 'दीव में चलने वाला रुपया “साभरक' नाम से विख्यात है, दो साभरकों के बराबर उत्तर भारत का एक रुपया होता है।'
उत्तरापथ के दो रुपयों के बराबर पाटलिपुत्र का एक रुपया होता है, अथवा दूसरे प्रकार से कहें तो दक्षिणा पथ के दो रुपयों के बराबर काञ्ची का एक रुपया होता है, जो "नेलक' नाम से प्रसिद्ध है और दो नेलकों के बराबर कुसुम नगरीय एक रुपया होता है, इस कुसुम नगरीय रुपये से वस्त्र का १८ रु० जघन्य मूल्य माना जाता है।'
विद्वान् मालवणिया ने भाष्यकार की सिक्कों की चर्चा को भाष्य सौराष्ट्र में बनाने का प्रमाण कैसे मान लिया यह समझ में नहीं आता, सिक्कों की चर्चा में तो सौराष्ट्र के "दीव' के अतिरिक्त मद्रास प्रेसिडेण्टी स्थित “काञ्ची" के "नेल क" पूर्व भारत के "पाटलिपुत्रक" तथा "कुसुमनगरीय” नाम भी आए हैं, इन नामों के आधार पर निशीथ भाष्य की रचना दक्षिणापथ के काञ्चीनगर में कोई बताये अथवा तीसरा कोई पाटलिपुत्र में भाष्य की रचना बताये तो उसके लिए पण्डितजी के पास क्या प्रत्युत्तर है ?
- इसी प्रकार पण्डित मालवणिया ने बहुत सी लचर और अप्रामाणिक बातें निशीथ के अध्ययन में लिखी हैं, परन्तु उन सब की चर्चा करने के लिए यह स्थान उचित नहीं है, मात्र दो चार बातों का उल्लेख करके अध्ययन की चर्चा समाप्त कर देंगे।
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