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द्वितीय भद्रबाहु की कोई चर्चा नहीं है, इस प्रकार प्राचीन ग्रन्थों की प्रशस्तियों में द्वितीय भद्रबाहु का नामोल्लेख न होने से "आदि पुराण" के एक उल्लेख मात्र से द्वितीय भद्रबाहु को द्वितीय शताब्दी के लगभग मानना प्रामाणिक कोटि में नहीं आ सकता ।
इस प्रकार नियुक्तिकार दशपूर्वधरों से निम्न कोटि के थे और द्वितीय भद्रबाहु का कोई प्रमाण न होने से वर्तमान दश सूत्रों की निर्युक्तियाँ भी आचार्य आर्य रक्षित की कृतियाँ होने की मान्यता की तरफ मैं झुकता हूँ ।
आर्य रक्षितजी ने अनुयोगों का पार्थक्य और कालिक श्रुत में नयवाद का गोपन जैसे महान् कार्य करने का साहस किया है तो उनके लिए आवश्यकादि दश सूत्री पर नियुक्ति निर्माण का कार्य दुर्घट नहीं था ।
निशीथ भाष्यकार ने भाष्य का निर्माण किस देश में रहकर किया होगा ? -
इस समय मेरे सामने “निशीथ, एक अध्ययन" शीर्षक एक लेख पं० दलसुख मालवणिया का पड़ा है, इसमें पण्डितजी एक प्रश्न उठाकर उसका स्वयं उत्तर देते हुए कहते हैं
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"भाष्यकार ने किस देश में रहकर भाष्य लिखा ? इस प्रश्न का उत्तर हमें गा० २६२७ से मिल सकता है, उसमें 'चक्के थूभाइया' शब्द हैं । चूर्णिकार ने स्पष्टीकरण किया है कि उत्तरापथ में धर्मचक्र है, मथुरा में देवनिर्मित स्तूप है, कोसला में जीवन्त स्वामी प्रतिमा है, अथवा तीर्थंकरों की जन्मभूमियाँ हैं इत्यादि मानकर उन देशों में यात्रा न करे ।"
पण्डितजी ने अपने निरूपण में जिस गाथा २६२७ से उत्तर मिलने का लिखा है, उस गाथा को हम नीचे उद्धत करते हैं
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